नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा के बाद अमेरिका की पहली आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने आई है। इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार वेनेजुएला की विपक्षी नेता मारिया कोरिना मचाडो को दिया गया है। मचाडो को लोकतांत्रिक अधिकारों को बढ़ावा देने और तानाशाही शासन के खिलाफ शांतिपूर्ण संघर्ष के लिए यह सम्मान मिला है। हालांकि, इस निर्णय पर अमेरिका के व्हाइट हाउस ने नाराजगी जताते हुए कहा कि “नोबेल कमिटी ने एक बार फिर शांति की जगह राजनीति को तरजीह दी है।”
व्हाइट हाउस के कम्युनिकेशन डायरेक्टर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए लिखा, “भले ही राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को इस बार नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिला, लेकिन वह दुनिया में शांति समझौते कराना जारी रखेंगे। उनके पास एक मानवता से भरा दिल है। उनके जैसा कोई नहीं है। वह अपनी इच्छाशक्ति से पहाड़ को भी हिला सकते हैं।”
अमेरिकी प्रशासन ने कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप ने कई देशों के बीच संघर्षों को समाप्त करने में सक्रिय भूमिका निभाई है और आगे भी वे युद्धों को खत्म करने और जिंदगियां बचाने की दिशा में काम करते रहेंगे। व्हाइट हाउस के बयान में यह भी कहा गया, “एक बार फिर नोबेल कमिटी ने साबित कर दिया कि वह शांति की जगह राजनीति को प्राथमिकता देती है।”
विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप प्रशासन की यह प्रतिक्रिया उस बढ़ते असंतोष को दर्शाती है, जिसमें अमेरिकी सत्तारूढ़ वर्ग मानता है कि ट्रंप की मध्यस्थता वाली कई शांति पहलें, जैसे गाजा, यूक्रेन और कोरियाई प्रायद्वीप अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्याप्त मान्यता नहीं पा रही हैं।
नोबेल कमिटी ने मारिया कोरिना मचाडो को यह पुरस्कार “तानाशाही के बीच लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा और वेनेजुएला में शांतिपूर्ण परिवर्तन” के लिए दिया है। उन्हें इस पुरस्कार के साथ 1.2 मिलियन डॉलर (लगभग 10 करोड़ रुपये) की धनराशि भी मिलेगी।
यह घोषणा ऐसे समय में हुई है जब कई देशों में लोकतंत्र खतरे में है और विपक्षी आवाजों को दबाया जा रहा है। वहीं, अमेरिका का यह तीखा बयान इस बात की ओर इशारा करता है कि इस बार का नोबेल सिर्फ सम्मान नहीं, बल्कि एक नई राजनीतिक बहस का केंद्र बन गया है।
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