छपे हुए शब्दों की महिमा अपरंपार है। खास कर सरकारी कागजातों में एक शब्द की गलती जीवन पर भारी पड़ जाती है। मुंबई के कालिना स्थित सरकारी फोरेंसिक लैब की रिपोर्ट में गलती की चलते एक विदेशी नागरिक को 20 महिने तक जेल की हवा खानी पड़ी। बांबे हाईकोर्ट ने इस मामले को बेहद गंभीर मानते हुए राज्य के गृह विभाग से पूछा कि बगैर किसी गलती के जेल की सजा काटने के लिए इस पीड़ित को कितना मुआवजा देंगे। अदालत ने कहा कि गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव यह तय कर बताएं नहीं को कोर्ट मुआवजा तय करेंगी।
आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) ने एक नाईजीरियन नागरिक नोवाफॉर सैमुअल को मादक पदार्थ की तस्करी के मामले में गिरफ्तार किया था। इसके बाद उसके पास से बरामद मादक पदार्थ को जांच के लिए कालीना के फोरेंसिक लैब में भेजा था। लैब ने पहले रिपोर्ट में आरोपी के पास से मिले पदार्थ को मादक पदार्थ बताया लेकिन बाद में अपनी रिपोर्ट में सुधार कर कहा कि उसने जो रिपोर्ट भेजी है उसमें टाइपिंग की गलती हो गई है। आरोपी के पास जो सामग्री मिली है वह कोकिन या अन्य मादक पदार्थ नहीं है। तब तक निचली अदालत से आरोपी की जमानत खारिज हो चुकी थी।
न्यायमूर्ति भारती डागरे के सामने नाइजीरियन नागरिक के जमानत आवेदन पर सुनवाई हुई। मामले से जुड़े तथ्यों पर गौर करने के बाद न्यायमूर्ति ने कहा कि इस मामले में कोई मामूली टाइपिंग की त्रुटी नहीं है। यह एक बड़ी गलती है। इसकी वजह से आरोपी को बिना किसी अपराध को कई महीने जेल में बिताने पड़े हैं। एक नागरिक के लिए उसकी स्वतंत्रता सर्वोपरि होती है फिर चाहे वह नागरिक इस आरोपी की तरह विदेशी ही क्यों न हो। न्यायमूर्ति ने कहा कि राज्य के अधिकारी भले खुद को श्रेष्ठ समझते हैं।
स्वयं को कानून-व्यवस्था का प्रभारी मानते हैं, इसलिए उनकी जिम्मेदारी पूर्ण व्यवहार की अपेक्षा की जाती है। मामलों के तथ्यों से स्पष्ट है कि इस मामले में आरोपी को बेवजह जेल में रहना पड़ा लिहाजा हम राज्य के गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव से जानना चाहते हैं कि वे इस मामले में आरोपी को कैसे मुआवजा प्रदान करेंगे। यदि वे इस मामले में खुद सामने से कुछ नहीं कहेंगे तो कोर्ट को मुआवजे की रकम तय करनी पड़ेगी। न्यायमूर्ति ने शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई रखी है।
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