गढ़चिरौली में बुधवार को नक्सली हमले में 15 पुलिस कमांडो शहीद हो गए, यह सभी जवान एलीट सी-60 विंग (C-60 Wing) के सदस्य थे, जिसे विशेष रूप से 1990 में नक्सल हिंसा से निपटने के लिए स्थापित किया गया था,तेलंगाना में ग्रेहाउंड बलों और आंध्र प्रदेश में एसओजी स्पेशल यूनिट की तरह ही सी-60 को महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में हिंसक माओवादियों का मुकाबला करने का जिम्मा सौंपा गया है। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने उनके योगदान की प्रशंसा भी की थी, इतना ही नहीं, इन जवानों को वैकल्पिक रूप से ‘क्रैक कमांडो’ भी कहा जाता है।
शनिवार को इसी सी-60 विंग ने महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले में एनकाउंटर में कम से कम 26 नक्सलियों को मार गिराया है, अभी तक मारे गए सभी नकसलियों की पहचान उजागर नहीं की गई है, पर इस एनकाउंटर में नक्सलियों के टॉप कमांडर मिलिंद तेलतुम्बड़े के भी मारे जाने की सूचना है। तेलतुंबड़े पर 50 लाख रुपये का इनाम घोषित था. इतना ही नहीं, उसके साथ उसकी पत्नी के भी मारे जाने की खबर है. इस दौरान तीन जवान भी घायल हुए हैं। बता दें कि नक्सली गतिविधि सबसे पहले 1980 के दशक में आंध्र प्रदेश से महाराष्ट्र में फैली थी। 1982 में चंद्रपुर जिले से अलग हुआ गढ़चिरौली जिला सबसे अधिक प्रभावित हुआ था, जहां लगातार हुई हिंसा ने कहर बरपाया था।
तत्कालीन पुलिस अधिकारी केपी रघुवंशी, जो बाद में 26/11 के हमलों के दौरान हेमंत करकरे की मौत के बाद महाराष्ट्र एटीएस के प्रमुख बने, को 1990 में राज्य पुलिस की एक कमांडो फोर्स बनाने का जिम्मा सौंपा गया था। जिसके बाद सी-60 के लिए 60 कमांडो के एक बैच को गढ़चिरौली के लिए उन्हीं क्षेत्रों से भर्ती किया गया, जहां नक्सलियों ने अपने लड़ाकों को भर्ती किया था. क्षेत्रीय होने के कारण C-60 में भर्ती जवान राज्य पुलिस की अन्य इकाइयों की तुलना में अधिक तेज पैंतरेबाज़ी और स्थानीय आबादी के साथ बातचीत करने में भी अधिक सक्षम हैं। हिंसक स्थिति संभालने के अलावा सी-60 माओवादियों को आत्मसमर्पण करने और मुख्यधारा में शामिल कराने का भी काम करती है।