कोरोना टीका न लगवाने वाले मुंबई पोर्ट ट्रस्ट के एक धर्म विशेष के कर्मचारियों को बांबे हाईकोर्ट ने राहत देने से इंकार कर दिया है। टीका न लगवाने की वजह से इन्हें हर 10 दिन पर आरटी पीसीआर टेस्ट रिपोर्ट दिखानी पड़ती है। इसके खिलाफ मोहम्मद जऊर सहित सात कर्मचारियों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। हाईकोर्ट ने मुंबई पोर्ट ट्रस्ट के फैसले को सही बताते हुए कर्मचारियों की याचिका खारिज कर दिया।
इस दौरान अदालत ने कहा कि कोरोना टीका न लगवाने वाले लोग कोरोना संक्रमण फैलाने के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। हाईकोर्ट ने कोरोना का टीका न लगवाने वाले कर्मचारियों को हर दस दिन में आरटी पीसीआर की रिपोर्ट लाने की अनिवार्यता को सही ठहराया है। कोर्ट ने कहा कि टीका न लगवाने वालों को आरटी पीसीआर रिपोर्ट लाने के लिए कहना सही है। मुंबई पोर्ट ट्रस्ट (एमपीटी) ने कोरोना का टीका न लगवाने वाले कर्मचारियों को हर दस दिन में आरटी पीसीआर की रिपोर्ट लाना अनिवार्य किया है।
परिपत्र में साफ किया गया था कि जिन कर्मचारियों ने टीका नहीं लगवाया है उन्हें बिना आरटी पीसीआर रिपोर्ट के काम पर नहीं आने दिया जाएगा। यह रिपोर्ट दस दिनों के लिए वैध होगी। 16 जून 2021 को जारी इस परिपत्र के खिलाफ सात कर्मचारियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि यह परिपत्र टीका लगवाने वालों व टीका न लगवाने वाले कर्मचारियों के बीच भेदभाव करता है। इसलिए यह परिपत्र मौलिक अधिकार का हनन करता है।
न्यायमूर्ति एसजे काथावाला व न्यायमूर्ति अभय अहूजा की खंडपीठ के सामने याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने एमपीटी के परिपत्र को कायम रखा। इसके साथ ही कहा कि जो लोग जानबूझकर कोरोना का टीका नहीं लगवा रहे हैं उनसे कोरोना के संक्रमण फैलने का खतरा ज्यादा है। हालांकि खंडपीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा कोरोना का टीका न लगवाने के निर्णय का संस्थान ने सम्मान किया है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि टीका लगवाने वाले व टीका न लगवाने वाले कर्मचारियों के साथ एक जैसा बर्ताव किया जाए। एमपीटी एक बड़ा संस्थान है। इसलिए वहां पर जरुरी है कि कोरोना का टीका न लगवाने वाले कर्मचारियों पर नजर रखी जा सके। इसके तहत एक नियमित अंतराल पर टीका न लगवाने वाले लोगों की आरटी पीसीआर जांच निगरानी के लिए जरुरी है। यह काम करने के मौलिक अधिकार पर तर्कसंगत रोक है।
कर्मचारियों की ओर से पैरवी कर रही अधिवक्ता अदिती सक्सेना ने कहा कि कोरोना के प्रसार को लेकर टीका लगवाने वाले व टीका न लगवाने वाले कर्मचारियों के बीच भेदभाव नहीं किया जा सकता।क्योंकि दोनों से कोरोना का प्रसार हो सकता है। इसलिए याचिकाकर्ताओं को टीका लगवाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सूचाना के अधिकार के तहत केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने जो जानकारी दी है उसके तहत टीका लगवावना ऐच्छिक है। एमपीटी के वकील राहुल जैन ने याचिका का विरोध किया। उन्होंने कहा कि कोविड का टीका कोरोना के संक्रमण व प्रसार में कड़ी सुरक्षा प्रदान करता है।
उन्होंने कहा कि एमपीटी अपने कर्मचारियों को निशुल्क टीका दे रहा है। श्री जैन ने कहा कि टीक ऐच्छिक है। इसलिए एमपीटी कर्मचारियों को टीके के लिए बाध्य नहीं कर रहा है लेकिन विकल्प के तौर पर कर्मचारियों को नियमित अंतराल पर आरटी पीसीआर रिपोर्ट लाने के लिए कह रहा है। इस तरह खंडपीठ ने मामले से जुड़े दोनों पक्षों को सुनने के बाद कर्मचारियों की याचिका को खारिज कर दिया। और परिपत्र को कायम रखा।
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