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Thursday, December 18, 2025
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रिपोर्ट:भारत में डेटा चोरी की लागत ₹22 करोड़ के रिकॉर्ड स्तर पर पहुँची!

भारत में केवल 37% संगठनों ने AI एक्सेस कंट्रोल लागू किया है, जबकि लगभग 60% के पास अभी भी AI गवर्नेंस नीतियां नहीं हैं या वे उन्हें विकसित कर रहे हैं।

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भारत में डेटा चोरी (Data Breach) की औसत संगठनात्मक लागत 2025 में रिकॉर्ड ₹22 करोड़ (₹220 मिलियन) तक पहुँच गई है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 13% अधिक है। यह जानकारी अमेरिकी कंसल्टिंग कंपनी IBM की एक रिपोर्ट में गुरुवार को दी गई।

रिपोर्ट के अनुसार, भारत में डेटा चोरी की पहचान और उसे रोकने में लगने वाला औसत समय 263 दिन रहा, जो 2024 की तुलना में 15 दिन कम है। इसका कारण यह है कि अधिक संगठनों ने तेजी से ब्रेच की पहचान करने की क्षमता में सुधार किया है। भारत में केवल 37% संगठनों ने AI एक्सेस कंट्रोल लागू किया है, जबकि लगभग 60% के पास अभी भी AI गवर्नेंस नीतियां नहीं हैं या वे उन्हें विकसित कर रहे हैं। जिनके पास ऐसी नीतियां मौजूद हैं, उनमें से सिर्फ 34% ही AI गवर्नेंस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करते हैं।

डेटा चोरी के प्रमुख कारणों में फ़िशिंग (18%) पहले स्थान पर रहा, इसके बाद थर्ड-पार्टी वेंडर और सप्लाई चेन से समझौता (17%) तथा सिस्टम की कमजोरियों का दोहन (13%) शामिल हैं। रिपोर्ट में कहा गया कि दुनियाभर में AI को अपनाने की गति, उसकी सुरक्षा और गवर्नेंस उपायों से कहीं ज्यादा तेज़ है। AI से जुड़ी चोरी के मामले कुल शोध किए गए संगठनों में अभी कम हैं, लेकिन यह साइबर अपराधियों के लिए एक उच्च-मूल्य लक्ष्य बना हुआ है।

IBM इंडिया के वाइस प्रेसिडेंट, टेक्नोलॉजी, विश्वनाथ रामास्वामी ने कहा, “भारत में AI को अपनाने की गति अभूतपूर्व अवसर ला रही है, लेकिन यह कंपनियों को नए और जटिल साइबर खतरों के सामने भी खड़ा कर रही है। एक्सेस कंट्रोल और AI गवर्नेंस टूल्स की अनुपस्थिति केवल तकनीकी चूक नहीं, बल्कि एक रणनीतिक कमजोरी है। CISO को तत्काल कदम उठाने होंगे – AI सिस्टम में विश्वास, पारदर्शिता और गवर्नेंस को शामिल करना जरूरी है।”

शैडो एआई – यानी बिना IT विभाग की निगरानी के AI टूल्स का इस्तेमाल – भारत में ब्रेच की लागत बढ़ाने वाले शीर्ष तीन कारकों में शामिल रहा, जिससे औसत लागत में ₹1.79 करोड़ की बढ़ोतरी हुई। केवल 42% संगठनों के पास शैडो एआई का पता लगाने की नीतियां हैं। क्षेत्रवार, रिसर्च सेक्टर को सबसे अधिक नुकसान हुआ, जिसकी औसत लागत ₹28.9 करोड़ रही, इसके बाद परिवहन उद्योग (₹28.8 करोड़) और औद्योगिक क्षेत्र (₹26.4 करोड़) का स्थान रहा।

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