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Saturday, December 6, 2025
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अब न्यूक्लियर, बायोलॉजिकल और रेडियोलॉजिकल खतरों से लड़ने को तैयार भारतीय नौसेना!

DRDO ने सौंपे छह स्वदेशी रणनीतिक उपकरण, 'मेक इन इंडिया' कृत्रिम पैर भी हुआ लॉन्च

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भारत की रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने मंगलवार को भारतीय नौसेना को छह अत्याधुनिक स्वदेशी रूप से डिजाइन और विकसित रणनीतिक उपकरण औपचारिक रूप से सौंपे। इन उपकरणों का उद्देश्य न्यूक्लियर (परमाणु), बायोलॉजिकल (जैविक) और रेडियोलॉजिकल (विकिरण) खतरों से निपटने की नौसेना की क्षमताओं को मज़बूत करना है। यह कदम भारत के ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान को भी नई गति देगा।

डीआरडीओ द्वारा भारतीय नौसेना को सौंपे गए छह विशेष रणनीतिक उपकरणों में अत्याधुनिक तकनीकों से लैस गामा रेडिएशन एरियल सर्विलांस सिस्टम, एनवायरनमेंटल सर्विलांस व्हीकल, और व्हीकल रेडियोलॉजिकल कंटैमिनेशन मॉनिटरिंग सिस्टम शामिल हैं।

इसके अलावा, जल के भीतर विकिरण निगरानी के लिए अंडरवॉटर गामा रेडिएशन मॉनिटरिंग सिस्टम, दूषित कणों को निकालने और संक्रमण को रोकने हेतु डर्ट एक्सट्रैक्टर एंड क्रॉस कंटैमिनेशन मॉनिटर, तथा शरीर में रेडियोधर्मी तत्वों की पहचान के लिए ऑर्गन रेडियोएक्टिविटी डिटेक्शन सिस्टम भी इस सूची में शामिल हैं। ये सभी उपकरण न्यूक्लियर, बायोलॉजिकल और रेडियोलॉजिकल खतरों से निपटने में नौसेना की क्षमताओं को नई ऊंचाई देंगे।

इन उपकरणों को DRDO के अध्यक्ष डॉ. समीर वी. कामत ने नौसेना मुख्यालय में रियर एडमिरल श्रीराम अमूर को एक विशेष समारोह में सौंपा। यह हस्तांतरण जोधपुर स्थित रक्षा प्रयोगशाला में किया गया। DRDO ने कहा कि ये सभी उपकरण भारतीय नौसेना की विशिष्ट आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए रणनीतिक दृष्टि से विकसित किए गए हैं।

डीआरडीओ की एक प्रयोगशाला ने एम्स बीबीनगर के सहयोग से एक अत्याधुनिक स्वदेशी कृत्रिम पैर विकसित किया है, जिसे “ADI-DOC” नाम दिया गया है। यह प्रोस्थेसिस उन्नत कार्बन फाइबर से बना है और इसे खासतौर पर ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत डिजाइन किया गया है ताकि यह अंतरराष्ट्रीय गुणवत्ता के बावजूद बेहद किफायती हो।

इस कृत्रिम पैर का सफल बायोमैकेनिकल परीक्षण 125 किलोग्राम भार तक किया गया है, जिससे इसकी मजबूती और विश्वसनीयता प्रमाणित हुई है। यह उत्पाद तीन अलग-अलग वेरिएंट्स में उपलब्ध है ताकि विभिन्न वजन और आवश्यकताओं वाले उपयोगकर्ताओं को अनुकूल समाधान मिल सके।

सबसे उल्लेखनीय बात यह है कि जहां अंतरराष्ट्रीय स्तर के आयातित प्रोस्थेसिस की कीमत करीब दो लाख रुपये तक होती है, वहीं यह स्वदेशी मॉडल मात्र ₹20,000 से कम कीमत पर उपलब्ध कराया जाएगा। इसका उद्देश्य दिव्यांगजनों को सुलभ, उच्च गुणवत्ता वाला और टिकाऊ विकल्प प्रदान करना है, जिससे आयात पर निर्भरता घटेगी और सामाजिक समावेशन को बढ़ावा मिलेगा। इस नवाचार का अनावरण डीआरडीएल के निदेशक जीए श्रीनिवास मूर्ति और एम्स बीबीनगर के कार्यकारी निदेशक अहंतेम सांता सिंह द्वारा किया गया।

रक्षा मंत्रालय के अनुसार, यह स्वदेशी प्रोस्थेसिस,“उच्च गुणवत्ता और किफायती समाधान प्रदान करेगा ताकि यह अंतरराष्ट्रीय मॉडलों की तरह भारत के दिव्यांगों को सुलभ हो सके।” यह नवाचार दिव्यांगजनों के सामाजिक और आर्थिक समावेशन में नई राह खोलेगा और देश को आयात पर निर्भरता से भी मुक्त करेगा।

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