लद्दाख में सोनम वांगचुक द्वारा कथित हिंसक आंदोलन के बाद केंद्र सरकार ने क्षेत्र की दो प्रमुख संस्थाओं, लेह एपेक्स बॉडी (LAB) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (KDA), के साथ संवाद बहाल करने का फैसला किया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने दोनों संगठनों के प्रतिनिधियों को 22 अक्टूबर को बैठक के लिए आमंत्रित किया है। यह वार्ता 24 सितंबर को लेह में हुई हिंसा और सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी के बाद ठप पड़ गई थी।
24 सितंबर को विरोध प्रदर्शनों के दौरान लद्दाख में हालात बिगाड़े गए और उसे जेन झी आंदोलन का नाम दिया गया। राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची के तहत विशेष संवैधानिक प्रावधानों की मांग को लेकर चल रहे आंदोलनों को हिंसक मोड़ दिया गया, जिसमें स्थानीय भारतीय जनता पार्टी कार्यालय को आग के हवाले कर दिया गया और शांति प्रयासों के दौरान चार प्रदर्शनकारियों की मौत पुलिस फायरिंग में हुई। करीब 70 प्रदर्शनकारी घायल हुए, जबकि 50 लोगों को हिरासत में लिया गया। जानकारी के अनुसार गिरफ्तार किए गए बहुसंख्य दोड़ा और नेपाल से थे। सोनम वांगचुक को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत गिरफ्तार किया गया, जिससे उसकी रिहाई लगभग असंभव हो गई है।
आगामी वार्ता में LAB और KDA के प्रतिनिधियों के साथ लद्दाख के सांसद, उनके विधिक सलाहकार और लद्दाख स्वायत्त पर्वतीय विकास परिषद (LAHDC) के मुख्य कार्यकारी पार्षद शामिल होंगे। LAB के सह-अध्यक्ष चेरिंग दोरजे ने पुष्टि की कि दोनों संगठन बैठक में भाग लेंगे। उन्होंने कहा, “हमारी राज्य के दर्जे और छठी अनुसूची की मांगें पहले जैसी ही हैं। हमें उम्मीद है कि इस बार सरकार गंभीरता से वार्ता करेगी।”
वहीं KDA के सज्जाद कारगिली ने बताया कि उनका प्रतिनिधिमंडल फायरिंग में मारे गए लोगों के लिए न्याय और वांगचुक समेत गिरफ्तार किए गए कार्यकर्ताओं की रिहाई की भी मांग करेगा। गौरतलब है कि 2 जनवरी 2023 को गृह मंत्रालय ने लद्दाख से जुड़े मुद्दों के समाधान के लिए एक उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था। अगस्त 2019 में जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद से ही लद्दाख में केंद्र शासित प्रदेश के दर्जे के खिलाफ और विशेष संवैधानिक संरक्षण के लिए आंदोलन जारी है।
27 मई 2024 को हुई पिछली बैठक में ‘डोमिसाइल नीति’ पर सहमति बनी थी, लेकिन उसके बाद वार्ता रुक गई। इसके बाद सोनम वांगचुक ने राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची लागू करने की मांग को लेकर 35 दिन का भूख हड़ताल शुरू किया, जो हिंसा भड़कने के बाद समाप्त हुई।
24 सितंबर की हिंसा के बाद LAB और KDA ने 6 अक्टूबर को प्रस्तावित वार्ता से खुद को अलग कर लिया। हालांकि, जब केंद्र सरकार ने 17 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस बी. एस. चौहान की अगुवाई में न्यायिक जांच आयोग की घोषणा की, तो दोनों संगठनों ने बातचीत में लौटने पर सहमति दी। लद्दाख का यह आंदोलन अब केंद्र सरकार के सामने एक बड़ी राजनीतिक और संवैधानिक चुनौती बन गया है, जहां जनता अपनी पहचान, भूमि और संसाधनों की सुरक्षा के लिए संवैधानिक गारंटी की मांग पर अड़ी हुई है।
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