इंडिया गठबंधन की एकता पर सवाल उठने लगा है। जितना जोरशोर से इंडिया गठबंधन का नामकरण किया गया और उसके बारे में कई बातें कही जा रही थी, अब उसमें दरार देखी जा रही है। दरअसल, बुधवार को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जेडीयू के पांच उम्मीदवारों को मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में उतार कर नई बहस छेड़ दी। ऐसे में सवाल खड़ा किया जा रहा है कि आखिर इंडिया गठबंधन में होने के बावजूद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मध्य प्रदेश में अपने उम्मीदवार क्यों उतारे ?
दरअसल, मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस में सीट शेयरिंग को लेकर मचमच हो चुका है। सपा अब तक मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में लगभग 42 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार चुकी है। बहरहाल नीतीश कुमार द्वारा मध्य प्रदेश के पांच सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे जाने पर इंडिया गठबंधन के वजूद पर सवाल खड़ा होने लगा है। सवाल एक बार फिर वही आकर सामने खड़ा हो गया है कि जिस पार्टी का दूसरे राज्य में कोई अस्तित्व नहीं है। वह क्यों अपने सहयोगी पार्टी के सामने अपना उम्मीदवार खड़ा कर रही है। यह सवाल इंडिया गठबंधन से पूछा जाना चाहिए। वैसे इस मुद्दे पर बाद में बातचीत करेंगे।
अब यह जानने की कोशिश करते हैं कि जेडीयू ने मध्य प्रदेश के किन किन विधान सभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। इसमें पिछोर विधानसभा सीट पर चंद्रपाल यादव, राजनगर सीट पर रामकुंवर रैकवार, विजय राघवगढ़ सीट पर शिव नारायण सोनी, थांदला सीट पर तोल सिंह भूरिया और पेटलावद सीट पर रामेश्वर सिंघार को अपना प्रत्याशी बनाया है। इन पांचों सीटों पर कांग्रेस ने पहले ही अपना उम्मीदवार उतार चुकी है। इतना ही नहीं,राजनगर विधानसभा सीट से समाजवादी पार्टी ने भी अपना प्रत्याशी खड़ा किया है।
सबसे पहले हम बात मध्य प्रदेश के पिछोर विधानसभा सीट की करते हैं। पिछोर सीट के बारे में कहा जाता है कि यह सीट कांग्रेस का गढ़ है। इस सीट पर छह बार कांग्रेस नेता केपी सिंह ने जीत दर्ज किया हैं। लेकिन, इस बार कांग्रेस ने उन्हें शिवपुरी से टिकट दिया है। जबकि, पार्टी ने शैलेन्द्र सिंह को टिकट दिया था, लेकिन बाद में उनका टिकट काटकर अरविंद लोधी को टिकट दिया है। अरविंद लोधी को यह टिकट जाति समीकरण को देखते हुए दिया गया है। यहां लोधी वोटर सबसे ज्यादा हैं। इनकी संख्या 50 हजार के आसपास है। जबकि दूसरे नंबर पर ब्राह्मण समाज आता है ,जिसकी संख्या 35 हजार के आसपास है। इसके अलावा 30 हजार आदिवादी और अन्य वोटर 20 20 हजार के आसपास हैं। हालांकि, जेडीयू द्वारा जो उमीदवार इस सीट पर उतारा गया है। वह जातीय समीकरण के आधार पर नहीं है। ऐसे में माना जा रहा है कि जेडीयू उम्मीदवार केवल वोटकटवा ही साबित होगा। बताते चले कि मध्य प्रदेश के गठन के बाद इस सीट पर सबसे पहले हिन्दू महासभा ने चुनाव जीता था।
अब बात करते हैं राजनगर विधानसभा सीट की। यह सीट मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले में आती है। इस सीट पर कांग्रेस तीन बार से लगातार कब्जा जमाये हुए है। इसलिए यह सीट बीजेपी के लिए चुनौतीपूर्ण है। पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार अरविंद पटेरिया को कांग्रेस प्रत्याशी विक्रम सिंह नातीराज ने हराया था। हालांकि, एक बार फिर पटेरिया पर बीजेपी ने दाव लगाया है। पिछले चुनाव में भी इस सीट पर चार उम्मीदवार उतरे थे और यहां चौमुखी चुनावी जंग देखने को मिली थी। इस बार भी कांग्रेस, बीजेपी के आलावा जेडीयू और समाजवादी पार्टी चुनावी मैदान में हैं। जो इंडिया गठबंधन में शामिल हैं। यह सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है।
अगर बात विजयराघवगढ़ विधानसभा सीट की करें तो, यह भी सीट राजनगर जैसी ही है।बस अंतर इतना है कि तीन बार से इस सीट पर कब्जा जमाये संजय पाठक पहले कांग्रेस में थे। बीजेपी के विधायक संजय पाठक का ही असर है कि इस बार कांग्रेस के कई नेता बीजेपी का दामन थाम चुके हैं। कांग्रेस अब तक संजय पाठक का विकल्प नहीं खोज पाई है। इस बार कांग्रेस ने इस सीट पर नया चेहरा नीरज बघेल पर दाव लगाया है। अब जेडीयू द्वारा उम्मीदवार उतारे जाने से इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय हो चुका है। इस सीट पर एससी और ब्राह्मण समाज जीत तय करते हैं।
थांदला विधानसभा सीट भी कांग्रेस का अभेद किला है। यहां 1990 से लेकर अब तक हुए चुनावों में कांग्रेस ने पांच बार जीत दर्ज की है। जबकि बीजेपी एक बार ही जीत दर्ज कर पाई है। इस सीट को कांग्रेस को बचाये रखने का दबाव है तो बीजेपी इस सीट पर जीत का परचम लहराना चाहती है। जहां कांग्रेस अपने विधायक वीर सिंह भूरिया पर एक बार फिर विश्चास जताया है। जबकि बीजेपी ने कल सिंह भाभर को चुनावी मैदान में उतारा है। यह क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य है। अब इसी सीट पर जेडीयू ने भी दावा ठोंकर कांग्रेस के लिए मुश्किलें बड़ा दी है। इस सीट पर भी त्रिकोणीय मुकाबला होना तय है।
वहीं, पेटलावाद विधानसभा सीट की बात करें तो इस सीट पर कांग्रेस ने पिछले चुनाव में जीत दर्ज की थी। यह भी सीट आदिवासी बाहुल्य है और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। कांग्रेस ने एक बार फिर मैडा वालसिंह को अपना उम्मीदवार बनाया है। जबकि बीजेपी ने भी निर्मला दिलीप सिंह भूरिया पर दोबारा दाव खेला है। अब जेडीयू ने इस सीट पर अपने उम्मीदवार खड़ा कर मुकाबला को दिलचस्प बना दिया है।
सबसे बड़ी बात यह कि पांचों सीटों पर कांग्रेस का वर्चस्व है। इसके बावजूद जिस तरह से इन सीटों पर इंडिया गठबंधन के दल कांग्रेस के सामने उतर रहे हैं। उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि गठबंधन का क्या मतलब रह जाता है। सवाल उठ रहा है कि क्या इंडिया गठबंधन में प्रेशर पॉलिटिक्स चल रहा है। जेडीयू द्वारा इस मामले में कहा गया है कि गठबंधन लोकसभा चुनाव के लिए किया गया है,विधानसभा चुनाव के लिए नहीं।
दरअसल, कांग्रेस ने लोकसभा सीटों के बंटवारे को रोक दिया है। कांग्रेस चाहती है कि सीट शेयरिंग पांच राज्यों में होने वाले चुनाव परिणाम के बाद किया जाए। ताकि वह उसी हिसाब से सीटों के लिए मोलभाव किया जा सके। ऐसे में सवाल है कि क्या कांग्रेस के खेल को बिगाड़ने के लिए जेडीयू और सपा मध्य प्रदेश के चुनाव में उतर रही हैं। अब इसका जवाब तो ये पार्टियां ही दे सकती है। अब यहां यह देखना है कि कि कांग्रेस कैसे इस सियासी जाल से निकलती है।
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