पाकिस्तान में हर साल करीब 1,000 लोग, जिनमें ज्यादातर बच्चे शामिल हैं, रेबीज की वजह से जान गंवा देते हैं। हैरानी की बात यह है कि यह बीमारी पूरी तरह से रोकी जा सकती है, लेकिन जागरूकता की कमी, समय पर इलाज न मिलना और ग्रामीण व गरीब इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच इसकी सबसे बड़ी वजह बनी हुई है।
28 सितंबर को मनाए जा रहे वर्ल्ड रेबीज डे के मौके पर विशेषज्ञों ने चेतावनी दी कि अगर तुरंत सामूहिक कदम नहीं उठाए गए तो यह संकट और गहराता जाएगा। इस साल की थीम है ‘अभी कदम उठाओ आप, मैं और समाज।’
चाइल्डलाइफ़ फाउंडेशन के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. मोहम्मद इरफ़ान हबीब ने मीडिया से बातचीत में कहा, “रेबीज से किसी की जान नहीं जानी चाहिए। अगर सही कदम तुरंत उठाए जाएं तो यह 100% रोकी जा सकती है। पाकिस्तान के गरीब इलाकों में बच्चों पर आवारा कुत्तों के हमले आम हैं। लेकिन पोस्ट-एक्सपोज़र प्रोफिलैक्सिस (PEP) यानी बचाव के लिए ज़रूरी टीके समय पर न मिलने की वजह से ऐसी घटनाएं जानलेवा साबित हो जाती हैं।”
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि हर माता-पिता और अभिभावक को ज़िंदगी बचाने वाले कदम पता होने चाहिए, “कुत्ते के काटने पर घाव को कम से कम 15 मिनट तक साबुन और पानी से धोएं, तुरंत अस्पताल पहुंचें और टीकाकरण का पूरा कोर्स ज़रूर पूरा करें।”
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, रेबीज एक वायरल बीमारी है जो केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर हमला करती है। लक्षण शुरू होते ही यह लगभग हमेशा घातक साबित होती है। दुनिया में 99% मामलों के लिए कुत्ते जिम्मेदार होते हैं, और 5 से 14 साल की उम्र के बच्चे सबसे अधिक शिकार बनते हैं।
आम तौर पर रेबीज का ऊष्मायन काल दो से तीन महीने का होता है, लेकिन संक्रमण की जगह और वायरस की मात्रा पर यह एक हफ्ते से लेकर एक साल तक भी हो सकता है। शुरुआती लक्षणों में बुखार, दर्द और घाव पर असामान्य झुनझुनी शामिल है, जो बाद में दिमाग और रीढ़ की हड्डी की घातक सूजन में बदल जाती है।
WHO के मुताबिक, रेबीज हर साल वैश्विक अर्थव्यवस्था पर 8.6 अरब डॉलर का बोझ डालता है। इसमें जान गंवाने, इलाज के खर्च और परिवारों पर पड़ने वाले मानसिक आघात का असर शामिल है। विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान में रेबीज की चुनौती से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान, आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाओं तक आसान पहुंच और आम जनता को जागरूक करने के प्रयास तुरंत तेज करने होंगे।
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