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Wednesday, December 31, 2025
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गणतंत्र दिवस की तैयारियां शुरू; इस साल कर्तव्य पथ पर दिखेंगे सेना के ‘मूक योद्धा’

परेड में दिखेंगे भारतीय नस्ल के कुत्ते

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गणतंत्र दिवस 2026 पर इस बार कर्तव्य पथ पर एक खास और भावनात्मक दृश्य देखने को मिलेगा। भारतीय सेना के पशु दस्ते पहली बार इतने बड़े और संगठित रूप में परेड में शामिल होंगे। ये पशु न केवल सेना की ताकत दिखाएंगे, बल्कि यह भी बताएंगे कि देश की रक्षा में उनके योगदान को कितनी अहम जगह दी जाती है।

इस विशेष दस्ते में चार शिकारी पक्षी (रैप्टर्स) देखने को मिलेंगे। वहीं भारतीय नस्ल के 10 सेना के कुत्ते और सेना में पहले से काम कर रहे 6 पारंपरिक सैन्य कुत्ते शामिल होंगे। वहीं दो बैक्ट्रियन ऊँट, और जांस्कर पोनी भी परेड दस्ते का हिस्सा होंगे। सेना के मुताबिक इस परेड का सबसे भावुक हिस्सा होंगे भारतीय सेना के कुत्ते। इन्हें प्यार से ‘मूक योद्धा’ भी कहा जाता है।

 कर्तव्य पथ पर सेना के ‘मूक योद्धा’, परेड में दिखेंगे भारतीय नस्ल के कुत्ते

इन कुत्तों को मेरठ स्थित रिमाउंट एंड वेटरनरी कॉर्प्स केंद्र में प्रशिक्षित किया जाता है। ये आतंकवाद विरोधी अभियानों, विस्फोटक और बारूदी सुरंगों की पहचान, खोज-बचाव कार्यों और आपदा राहत में सैनिकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करते हैं। कई बार इन कुत्तों ने अपनी जान की परवाह किए बिना सैनिकों की जान बचाई है। आत्मनिर्भर भारत के तहत सेना अब मुधोल हाउंड, रामपुर हाउंड, चिप्पीपराई, कोम्बई और राजापलायम जैसी भारतीय नस्लों के कुत्तों को भी बड़े स्तर पर शामिल कर रही है।

यह भारत की अपनी क्षमताओं पर बढ़ते भरोसे का साफ संकेत है। वहीं परेड में शामिल चार शिकारी पक्षी (रैप्टर्स) सेना की नई और स्मार्ट सोच को दिखाते हैं। इनका इस्तेमाल निगरानी और हवाई सुरक्षा से जुड़े कामों में किया जाता है, जिससे सेना के अभियान ज्यादा सुरक्षित बनते हैं।

भारतीय सेना ने बुधवार (31 दिसंबर) को जानकारी देते हुए बताया कि दस्ते की अगुवाई बैक्ट्रियन ऊँट करेंगे। इन्हें हाल ही में लद्दाख के ठंडे रेगिस्तानी इलाकों में तैनात किया गया है। ये ऊंट बहुत ठंडे मौसम और 15,000 फीट से ज्यादा ऊंचाई पर आसानी से काम कर सकते हैं। ये 250 किलो तक का सामान भी ढो सकते हैं और कम पानी व चारे में लंबी दूरी तय करते हैं। इससे सेना को दूरदराज और कठिन इलाकों में रसद पहुँचाने में बड़ी मदद मिलती है।

इसके बाद कदम से कदम मिलाकर चलेंगी ज़ांस्कर पोनी, जो कि लद्दाख की एक दुर्लभ और स्वदेशी नस्ल हैं। आकार में छोटी होने के बावजूद इनमें जबरदस्त ताकत और सहनशक्ति होती है। ये पोनी माइनस 40 डिग्री तापमान और बहुत ऊंचाई वाले इलाकों में 40 से 60 किलो वजन लेकर चल सकती हैं। साल 2020 से ये सियाचिन जैसे कठिन क्षेत्रों में सैनिकों के साथ सेवा दे रही हैं और कई बार एक दिन में 70 किलोमीटर तक गश्त करती हैं।

गणतंत्र दिवस 2026 पर जब ये पशु कर्तव्य पथ से गुजरेंगे, तो वे यह याद दिलाएंगे कि देश की रक्षा सिर्फ हथियारों से नहीं होती। सियाचिन की बर्फीली चोटियों से लेकर लद्दाख के ठंडे रेगिस्तान तक, इन पशुओं ने चुपचाप लेकिन मजबूती से अपना फर्ज निभाया है। सेना के मुताबिक ये सिर्फ सहायक नहीं हैं, बल्कि भारतीय सेना के सच्चे साथी और चार पैरों पर चलने वाले वीर योद्धा हैं।

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