दिल्ली में अवैध रूप से रह रहे रोहिंग्या घुसपैठियों को लेकर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई के बाद देश की वामपंथी गुटों में खलबली मच गई है। मंगलवार (2दिसंबर) को हुई सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्य कांत द्वारा अवैध रूप से भारत में घुसने वाले व्यक्तियों के अधिकारों पर उठाए गए गंभीर सवालों और टिप्पणियों ओर लेफ्ट-लिबरल वामपंथी वकील-कार्यकर्ताओं और कुछ पूर्व न्यायाधीशों का एक गुट खुलकर हमलावर हो गया है।
प्रशांत भूषण की संस्था कैम्पेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी अँड रिफॉर्म्स (CJAR) की अगुवाई में 30 से अधिक व्यक्तियों ने CJI को संबोधित एक ओपन लेटर जारी किया है। इसमें कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनवाई के दौरान की गई टिप्पणियाँ अमानवीय हैं और रोहिंग्या समुदाय का अमानवीकरण करने वाली हैं। हस्ताक्षरकर्ताओं में दिल्ली हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ए.पी. शाह, मद्रास हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश के. चंद्रू, पटना हाई कोर्ट की पूर्व जज अंजना प्रकाश सहित कई जाने-माने वामपंथी शामिल हैं।
हैबियस कॉर्पस याचिका में दिल्ली पुलिस द्वारा कथित तौर पर हिरासत में लिए गए पाँच रोहिंग्या नागरिकों के लापता होने का आरोप लगाया गया था। याचिका मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. रीटा मंचंदा ने दायर की थी। सुनवाई के दौरान CJI सूर्य कांत ने स्पष्ट कहा था कि, “सरकार ने इन्हें शरणार्थी घोषित किया ही नहीं है। यदि कोई व्यक्ति बाड़ काटकर या सुरंग बनाकर अवैध रूप से घुसता है, तो क्या अदालत का दायित्व है कि हम उसे यहाँ सभी अधिकार दें?”
उन्होंने यह भी कहा था कि भारत के अपने गरीब नागरिक हैं, जिनके अधिकार और सुविधाएँ सीमित हैं, और अदालत ऐसे अवैध प्रवासियों को उन पर प्राथमिकता नहीं दे सकती। पीठ ने यह भी संकेत दिया कि यदि रोहिंग्या पर ऐसी याचिका स्वीकार की जाए, तो अन्य देशों से अवैध रूप से आने वालों के लिए भी समान दावे उठेंगे।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता पूरी तरह अजनबी हैं, इसलिए उन्हें संवेदनशील निर्वासन संबंधी जानकारी माँगने का कोई अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई जनवरी तक के लिए स्थगित कर दी।
An open letter to the Chief Justice of India from former judges, advocates and the CJAR working group, regarding undignifying remarks on Rohingya refugees during a hearing on the 2nd of December. pic.twitter.com/jhONOlpwry
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) December 5, 2025
CJAR द्वारा तैयार पत्र में कहा गया है कि अदालत ने संवेदनशील शरणार्थियों को घुसपैठियों के बराबर बता दिया और ऐसी टिप्पणियाँ न्यायपालिका में पूर्वाग्रह की आशंका पैदा करती हैं। पत्र में यह दावा किया गया है कि रोहिंग्या लोग शरणार्थी हैं, चाहे भारत सरकार ने उन्हें यह दर्जा दिया हो या नहीं। वामपंथियों के पत्र के अनुसार, शरणार्थी का दर्जा घोषणात्मक होता है और व्यक्ति स्वयं-घोषणा के आधार पर शरणार्थी माना जा सकता है।
पत्र में संयुक्त राष्ट्र द्वारा रोहिंग्या समुदाय को दुनिया का सबसे अधिक प्रताड़ित अल्पसंख्यक बताने और अंतरराष्ट्रीय अदालत द्वारा म्यांमार की कार्रवाई को जातीय सफ़ाया कहे जाने का हवाला दिया गया। हस्ताक्षरकर्ताओं ने CJI सूर्य कांत से मानवीय और संवैधानिक मूल्यों की पुनः पुष्टि करने की मांग की।
पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में प्रशांत भूषण के अलावा कई ऐसे नाम हैं जो लंबे समय से वामपंथी एक्टिविज़्म और अदालत में विवादास्पद याचिकाओं के लिए जाने जाते हैं, जैसे राजीव धवन, कोलिन गोंजाल्विस, चंद्र उदय सिंह, कमिनी जायसवाल, गौतम भाटिया और शहरुख आलम। इन व्यक्तियों पर अक्सर यह आरोप लगाया जाता रहा है कि ये राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर अवैध प्रवासियों व विदेशी समूहों के पक्ष में खड़े होते हैं।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा रोहिंग्या की कानूनी स्थिति पर सीधे-सीधे सवाल उठाने से, और अब वामपंथी समूहों द्वारा एकजुट होकर CJI पर हमला करने से यह बात तो साफ है की वामपंथी भारतीय नागरिकों की तरह घुसपैठियों को भारत के नागरिकों की तरह अधिकार देने के पक्ष में है।
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