राज्य में बढ़े मानवाधिकार उल्लंघन के मामले पर आयोग में स्टाफ की कमी 

 मानवाधिकार आयोग के पास है सिर्फ 50 प्रतिशत स्टाफ    

राज्य में बढ़े मानवाधिकार उल्लंघन के मामले पर आयोग में स्टाफ की कमी 

एक तरफ राज्य में मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है पर आयोग के आधे पद खाली है। फिलहाल आयोग 50 प्रतिशत क्षमता पर काम कर रहा है। महाराष्ट्र राज्य मानवाधिकार आयोग द्वारा उपलब्ध कराई गई जानकारी और आंकड़ों के अनुसार, आयोग में 51% पद खाली हैं, जिसका अर्थ है कि आयोग 50% क्षमता पर काम कर रहा है। आरटीआई कार्यकर्ता जितेंद्र घाड़गे द्वारा हासिल जानकारी के अनुसार कुल 54 पदों में से 28 पद रिक्त हैं।

आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020-21 में कुल 21,820 मामले लंबित हैं, जिसका मुख्य कारण महाराष्ट्र में मानवाधिकारों का उल्लंघन है। आयोग ने वर्ष 2020-21 के दौरान कुल 1083 मामलों का निस्तारण किया लेकिन शिकायतकर्ताओं के पक्ष में केवल 15 मामलों का ही फैसला हुआ है। पिछले पांच साल में सिर्फ 151 मामलों में राहत मिली है। इन आंकड़ों से सवाल यह उठता है की क्या लोग आयोग के पास झूठी शिकायत कर रहे हैं।

एमएसएचआरसी की वेबसाइट पर प्रगति रिपोर्ट के विस्तृत अध्ययन के बाद, 2003-04 से 2011-12 तक राहत दिए गए मामलों की कुल संख्या 2,012 है और 2013-14 से 2020 तक यह केवल 258 है। यानी 2014 के बाद मानवाधिकार हनन के मामलों का ग्राफ ऊपर चढ़ने लगा लेकिन जो राहत दी गई उसकी तुलना में बहुत कम रही है।

‘द यंग व्हिसलब्लोअर्स फाउंडेशन’ के जितेंद्र घाडगे के अनुसार, “कर्मचारियों की 50% रिक्तियों ने आयोग के कामकाज को ठप कर दिया है और बैकलॉग बढ़ रहा है क्योंकि पूरे राज्य के लिए केवल 3 अदालतें हैं। राज्य सरकार को सभी रिक्तियों को तुरंत भरना चाहिए और अदालतों की संख्या दोगुनी करें ताकि राज्य में मानवाधिकारों के उल्लंघन के सभी पीड़ितों को न्याय मिल सके।”

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