मुंबई। लोगों के मानवाधिकारों के संरक्षण के लिए बनी संस्था राज्य मानवाधिकार के अध्यक्ष सहित सदस्यों के पद लंबे समय से रिक्त हैं। फिलहाल यह संस्था पूरी तरह से निष्क्रिय है और सिर्फ सफेद हाथी बन कर रह गई है। राज्य मानवाधिकार आयोग की इस स्थिति पर दुख जताते हुए बांबे हाईकोर्ट ने कहा कि आयोग की यह स्थिति जान कर हम आहत है। हाईकोर्ट में आयोग की बुरी स्थिति को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई चल रही है। हाईकोर्ट ने कहा है कि वर्तमान में महाराष्ट्र राज्य मानवाधिकार आयोग का मृत व निष्क्रिय संस्था के रुप में नजर आना निराश व आहत करता है।
हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि राज्य सरकार ने 12 जुलाई 2021 को आश्वासन दिया था कि 12 सितंबर 2021 तक आयोग के चेयरमैन व सदस्यों के रिक्त पदों को भर दिया जाएगा। लेकिन अब तक पदों को नहीं भरा गया है। सामाजिक कार्यकर्ता नरेश गोसावी ने इस बारे में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की है।और याचिका में सरकार को आयोग में रिक्त पदों को भरने का निर्देश देने का आग्रह किया है। इसके साथ ही याचिका में आयोग को कामकाज के लिए बड़ी जगह उपलब्ध कराने व जरूरी संसाधन मुहैया कराने का भी निवेदन किया गया है। याचिका के मुताबिक आयोग के स्टाफ के लिए 51 पद मंजूर किए गए हैं लेकिन इसमें से 26 पद ही भरे गए है।
अतिरिक्त सरकारी वकील गीता शास्त्री ने याचिका पर सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता व न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी की खंडपीठ के सामने कहा कि सरकार को इस मामले में एक आखरी मौका दिया जाए। उन्होंने कहा कि एक महीने के भीतर आयोग के चेयरमैन की नियुक्ति के बारे में निर्णय ले लिया जाएगा। याचिका पर गौर करने के बाद खंडपीठ ने कहा कि आखिर आयोग को कामकाज के लिए जगह क्यों नहीं दी गई है। आयोग का निष्क्रिय होना निराश करता है। खंडपीठ ने फिलहाल याचिका पर सुनवाई 25 अक्टूबर तक स्थगित कर दी है। और सरकार को रिक्त पदों को भरने को कहा है।