मुंबई। यूँ तो ओलंपिक में भारत के लिए पहला गोल्ड मैडल अभिनव बिंद्रा ने 2008 के बीजिंग ओलंपिक में हासिल किया था। लेकिन एक भारतीय एथलीट और है, जिसने उससे भी पहले पैरालिंपिक में स्वदेश के लिए गोल्ड मेडल जीता था। महाराष्ट्र के इस मराठा एथलीट का नाम है मुरलीकांत पेटकर। मुरलीकांत ने हेडलबर्ग में 1972 के पैरालंपिक खेलों में 50 मीटर की फ्री-स्टाइल तैराकी में गोल्ड मैडल जीता था। मुरलीकांत ने यह कीर्तिमान 37.33 सेकेंड में रचा था। 2018 में उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया था।
भारत-पाक युद्ध में हुए दिव्यांग, असल में थे मुक्केबाज : मुरलीकांत पेटकर मिलिट्री में सेवारत थे। वे कोर ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड मैकेनिकल इंजीनियर्स (ईएमई) में कार्यरत थे। असल में पेटकर अपने आरंभिक दिनों में कुशल मुक्केबाज थे और उनका सपना 1968 के ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करना था। लेकिन नियति को शायद यह स्वीकार नहीं था। सो, 1965 में भारत-पाकिस्तान में युद्ध छिड़ गया। युद्ध में पेटकर गोलियों से गंभीर रूप से छलनी होकर दिव्यांग हो गए। पेटकर ने बावजूद इसके हार नहीं मानी और तेल अवीव में हुए 1968 के पैरालंपिक खेलों में टेबल टेनिस टूर्नामेंट में हिस्सा लिया। वे टूर्नामेंट के दूसरे दौर तक पहुंच भी, पर मैडल जीतने का उनका सपना तब अधूरा ही रह गया।
भाला फेंक में भी अंतिम दौर तक नॉकआउट: पहली बार पैरालंपिक खेलों में हिस्सा लेने के बाद उनका लक्ष्य अब 1972 के पैरालिंपिक में पार्टिसिपेट करना था। इस दरमियान उन्होंने तैराकी समेत अन्य खेलों के लिए खुद को तैयार किया और फिर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तैराकी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेकर 4 मैडल भी जीते। उन्होंने 1972 के पैरालंपिक खेलों में तैराकी व भाला फेंक में हिस्सा लिया और तैराकी स्पर्धा में मुरलीकांत ने 37.33 सेकेंड के रिकॉर्ड टाइम में 50 मीटर फ्री-स्टाइल के अंतर्गत गोल्ड मैडल जीतकर इतिहास रच दिया। हालांकि,भाला फेंक में भी उन्होंने अंतिम दौर तक नॉकआउट किया था।