मुंबई। लोगों की निगाह में डॉक्टर को भगवान और अस्पताल को देवालय का दर्जा हासिल है, क्योंकि जान बचने और बचाने वाले की समूची कवायद का अहम ठिकाना यही है। यही वह जगह है,जहां तन-मन की सेहत को दुरुस्त रखने के लिए हर संभव प्रयास किया जाता है, ताकि जिंदगी सलामत बनी रहे। लेकिन अगर ये ठिकाना ही बीमार हो, तो फिर भला क्या हश्र होगा ? इसकी नजीर पेश आई कोरोनाकाल में। तब क्या हुआ, किसने और क्या-क्या नुस्खे बताए उसे ? आइए जानते हैं –
सुरक्षात्मक निर्देशों के कार्यान्वयन पर माँगा हलफनामा
दुनिया भर में मौत का तांडव और भारी आर्थिक उथल-पुथल मचाने वाली वैश्विक महामारी कोविद का भारत के विविध राज्यों समेत महाराष्ट्र में भी प्रकोप का दौर तेजी पर था। राज्य के कोविड अस्पताल सहित कुछ अन्य अस्पतालों में इस दरमियान आग लगने जैसी गंभीर घटनाएं तक हुई थीं, जिनमें वहां इलाज के लिए भर्ती कई मरीजों की गई थी। इस मसले को लेकर नीलेश नवलखा नामक जागरूक सामाजिक कार्यकर्ता ने मुंबई हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। मुख्य न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति गिरीश कुलकर्णी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ के समक्ष हुई इस याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने राज्य सरकार को इस बाबत लिखित हलफनामा सौंपने का निर्देश दिया है कि उसने अस्पतालों की सुरक्षा के लिए अदालत द्वारा दिए गए निर्देशों को कैसे लागू किया। उल्लेखनीय है कि कोर्ट ने सुरक्षात्मक दृष्टिकोण के तहत पहले ही राज्य सरकार को कई निर्देश जारी किए थे, जिनमें अस्पताल में आशंकित विविध दुर्घटनाओं की रोकथाम के कार्यान्वयन के लिए उपायों का समावेश था।
याचिकाकर्ता का निर्देशों के पालन न होने का दावा
राज्य सरकार ने सुनवाई के दौरान अदालत को अस्पताल पंजीकरण, नवीनीकरण और नियमित फायर ऑडिट के लिए अग्निशमन सेवा निदेशालय से अनापत्ति प्रमाणपत्र प्राप्त करने, आग रोकथाम संबंधी प्रणाली स्थापित करने आदि के सख्त प्रावधान किए जाने की जानकारी दी। याचिकाकर्ता नीलेश नवलखा ने दावा किया कि अस्पताल इन निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं। अदालत में याचिकाकर्ता नवलखा की ओर से पैरवी एडवोकेट राजेश इनामदार ने की।