दिल्ली हाईकोर्ट ने तृणमूल कांग्रेस (TMC) सांसद महुआ मोइत्रा को बड़ी कानूनी राहत देते हुए कैश-फॉर-क्वेरी मामले में लोकपाल के उस आदेश को शुक्रवार (19 दिसंबर) को रद्द कर दिया, जिसमें CBI को उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने की अनुमति दी गई थी। हाईकोर्ट ने कहा कि लोकपाल ने लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के प्रावधानों को सही तरीके से नहीं समझा और प्रक्रिया में त्रुटि की।
न्यायमूर्ति अनिल क्षेतरपाल और हरिश वैद्यनाथन शंकर की पीठ ने महुआ मोइत्रा की याचिका स्वीकार करते हुए लोकपाल को एक महीने के भीतर मामले पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया। यह आदेश लोकपाल की पूर्ण पीठ द्वारा 12 नवंबर को पारित किया गया था, जिसमें अधिनियम की धारा 20(7)(a) और धारा 23(1) के तहत CBI को चार्जशीट दाखिल करने की छूट दी गई थी।
हाईकोर्ट ने माना कि लोकपाल ने जिस प्रक्रिया के आधार पर चार्जशीट दाखिल करने की अनुमति दी, वह कानून के अनुरूप नहीं थी। अदालत के अनुसार, लोकपाल को संबंधित व्यक्ति द्वारा दिए गए लिखित जवाब और सामग्री पर विधिवत विचार करना आवश्यक था, जो इस मामले में नहीं किया गया।
महुआ मोइत्रा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता निधेश गुप्ता ने दलील दी कि लोकपाल का आदेश प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों और अधिनियम के प्रावधानों के विपरीत है। उन्होंने कहा कि धारा 20(7)(a) के तहत कोई भी निर्णय लेने से पहले लोकपाल को संबंधित व्यक्ति की आपत्तियों और प्रस्तुत सामग्री पर विचार करना अनिवार्य है। गुप्ता ने अदालत में कहा, “लोकपाल के आदेश में मेरी मुवक्किल की सामग्री पर विचार का एक भी शब्द नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है मानो लोकपाल किसी और कानून को पढ़ रहा हो।”
महुआ मोइत्रा की याचिका का विरोध करते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (ASG) एस. वी. राजू ने कहा कि लोकपाल का आदेश कानून के अनुरूप था। उन्होंने दलील दी कि अधिनियम के तहत आरोपी को सीमित अधिकार दिए गए हैं और चार्जशीट की अनुमति से पहले मौखिक सुनवाई अनिवार्य नहीं है। राजू के अनुसार, “टिप्पणियां मांगी गई थीं, जो कानून के तहत पर्याप्त है। इसके बावजूद लोकपाल ने मौखिक सुनवाई भी दी।”
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा अध्यक्ष को शिकायत सौंपते हुए महुआ मोइत्रा पर आरोप लगाया था कि उन्होंने अपने संसदीय लॉग-इन क्रेडेंशियल्स उद्योगपति दर्शन हिरानंदानी को साझा किए, जिससे संसदीय विशेषाधिकारों और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े सवाल खड़े हुए। महुआ मोइत्रा ने लॉग-इन साझा करने की बात स्वीकार की थी, लेकिन किसी भी तरह का नकद या उपहार लेने के आरोपों से इनकार किया था। फिलहाल, दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के बाद यह मामला फिर से लोकपाल के विचाराधीन हो गया है और आगे की कार्रवाई उसके पुनर्विचार पर निर्भर करेगी।
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