AIMPLB: सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय मान्य नहीं? मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, गुजारा भत्ता देने के आदेश के ख़िलाफ़ दायर करेगा याचिका।

AIMPLB ने दावा किया है की शरिया के तहत बनाया हुआ स्पेशल क़ानून को नजरअंदाज कर सर्वोच्च न्यायलय सीआरपीसी आधार पर निर्णय नहीं दे सकता। 

AIMPLB: सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय मान्य नहीं? मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, गुजारा भत्ता देने के आदेश के ख़िलाफ़ दायर करेगा याचिका।

AIMPLB: Supreme Court's decision not valid? Muslim Personal Law Board will file a petition against the order to pay maintenance allowance.

कुछ दिनों से सुप्रीम कोर्ट के सीआरपीसी सेक्शन 125 के आधार पर मुस्लिम युवक की याचिका को ख़ारिज करते हुए उसे तलाक़शुदा बीवी को गुजरा भत्ता देने का आदेश दिया था। न्यायलय के आदेश बाद ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) में हड़कंप मच गया था।

इस्लामिक शरिया कानून के अनुसार इस्लाम में केवल इद्दत के दौरान यानि तलाक के दौरान ही महिला को गुजरा भत्ता देने की इजाज़त देता है। मुस्लिम वूमेन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स एंड डायवोर्स) एक्ट 1986 दरसल शाह बानो केस के निर्णय के बाद मुस्लिम समुदाय के तुष्टिकरण और समुदाय के मामलों में हस्तक्षेप से बचने के लिए बनाया गया था। इस स्पेशल कानून के मुताबिक मुस्लिम महिला केवल इद्दत के दौरान गुजारा भत्ता पाने के लिए पात्र है, तलाक के बाद वह स्वतंत्र रह सकती है या फिर किसी और से शादी भी कर सकती है। मुस्लिम समुदाय का तर्क है की अगर पति-पत्नी में रिश्ता ही नहीं बचा तो फिर पति को महिला का खर्च उठाने की कोई जरूरत नहीं। 

यहाँ पढ़िए पूरा मामला:

मुस्लिम महिला को गुजारा भत्ता देने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश!

AIMPLB: मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड देगा सुप्रीम कोर्ट के आदेश को चुनौती?  

महिलाओं के लिए सुरक्षा और समानता का हवाला देते हुए सर्वोच्च न्यायलय ने मुस्लिम वुमेन एक्ट 1986 के स्पेशल कानून के बावजूद भी कोर्ट ने सीआरपीसी के सेक्शन 125 आधारभूत मानकर महिला को गुजारा भत्ता देने का निर्णय दिया था। इस निर्णय के बाद मुस्लिम लॉ बोर्ड ने अपनी लॉ कमिटी को इस निर्णय का बारीकी से अभ्यास करने में लगाया था। इसी रविवार को बोर्ड ने अपने अगले कदम पर विचार करने के लिए मीटिंग भी बुलाई थी। 

जिसके बाद अब AIMPLB सर्वोच्च न्यायलय के निर्णय को चुनौती देने के लिए तैयार है। AIMPLB ने दावा किया है की शरिया के तहत बनाया हुआ स्पेशल क़ानून को नजरअंदाज कर सर्वोच्च न्यायलय सीआरपीसी आधार पर निर्णय नहीं दे सकता। इसी के साथ लॉ बोर्ड ने गुजारे भत्ते के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में जाने का निर्णय ले लिया है। 

ऐसा ही फैसला शाहबानो केस के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दिया था, जिसके बाद मुस्लिम समुदाय के लिए तत्कालिन सरकार ने स्पेशल प्रावधान किया। इसी प्रावधान के आधार पर आज AIMPLB सुप्रीम कोर्ट को चुनौती देने के लिए जा रहा है। बता दें की, AIMPLB के निर्णय के बाद भाजपा के नेताओं का कहना है की समुदाय को संविधान का आदर करते हुए न्यायलय के निर्णय मान लेना चाहिए, तो दूसरी तरफ कांग्रेस नेता तर्क दे रहें है की देश में मुस्लिम पर्सनल लॉ लागु है और अगर मुस्लिम पर्सनल लॉ लागू है तो फैसले उसके मुताबिक होने चाहिए।

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