विधानसभा चुनाव: “आप” को बड़ा झटका; कैबिनेट मंत्री कैलाश गहलोत ने दिया इस्तीफा!

पार्टी संयोजक और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को एक इस्तीफा पत्र भेजा गया है, जिसमें पार्टी द्वारा अपने वादों को पूरा करने में विफलता पर नाराजगी व्यक्त की गई है।

विधानसभा चुनाव: “आप” को बड़ा झटका; कैबिनेट मंत्री कैलाश गहलोत ने दिया इस्तीफा!

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जहां महाराष्ट्र और झारखंड राज्यों में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं, वहीं अब दिल्ली में सियासी घमासान शुरू हो गया है, जहां इसके बाद विधानसभा चुनाव होने हैं​|​​ दिल्ली सरकार में एक कैबिनेट मंत्री और आम आदमी पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने रविवार को परिवहन मंत्री पद के साथ-साथ पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से भी इस्तीफा दे दिया।

पार्टी संयोजक और दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को एक इस्तीफा पत्र भेजा गया है, जिसमें पार्टी द्वारा अपने वादों को पूरा करने में विफलता पर नाराजगी व्यक्त की गई है। उन्होंने इस बात पर भी अफसोस जताया कि पार्टी अब आम लोगों की नहीं रही​|​

कैलाश गहलोत ने अपने पत्र में लिखा कि पार्टी के साथ शीशमहल जैसे कई शर्मनाक और अजीब विवाद जुड़े रहे हैं​|​ क्या आप मानते हैं कि इस विवाद के कारण पार्टी के सभी सदस्य संदेह के भंवर में फंस गए हैं और हम अभी भी ‘आम आदमी’ हैं? अब यह साफ हो गया है कि दिल्ली सरकार अपना ज्यादातर समय केंद्र सरकार से लड़ने में बिता रही है। इससे दिल्ली की प्रगति नहीं होगी​|​ इसलिए अब मेरे पास पार्टी से अलग होने के अलावा कोई विकल्प नहीं है​|​’ इसलिए मैं पार्टी से इस्तीफा दे रहा हूं​|​

कैलाश गहलोत पर प्रशासनिक सुधारों, सूचना प्रौद्योगिकी, महिला एवं बाल विकास के साथ-साथ परिवहन की जिम्मेदारी थी| इन सभी खातों से उन्होंने इस्तीफा दे दिया है| कैलाश गहलोत आम आदमी पार्टी और दिल्ली सरकार के मंत्रिमंडल में एक प्रमुख नेता थे। बताया जा रहा है कि वे पार्टी द्वारा अपने वादे पूरे नहीं करने से नाराज हैं। उन्होंने यमुना नदी में बढ़ते प्रदूषण पर नाराजगी जताई| उन्होंने अरविंद केजरीवाल के आवास का नाम भी शीश महल रखा है|

इस्तीफे में और क्या लिखा?: अरविंद केजरीवाल जी, मैं सबसे पहले आपको एक विधायक और बाद में एक मंत्री के रूप में दिल्ली के लोगों की सेवा और प्रतिनिधित्व करने का अवसर देने के लिए धन्यवाद देना चाहता हूं। इसके अलावा मैं कहना चाहूंगा कि आज आम आदमी पार्टी के सामने कई गंभीर चुनौतियां हैं।

कुछ आंतरिक चुनौतियां भी हैं। जिन मूल्यों के साथ हमने शुरुआत की थी, उन पर अब राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हावी हो गई हैं। इस वजह से हमारे अपने कई वादे अब अधूरे हैं।

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