बिहार चुनाव: तेजस्वी बनाम आयोग!

2003 के बाद पहली बार बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण हो रहा है, जिसका मकसद पिछले दो दशकों में जुड़े वोटरों के दस्तावेजों का सत्यापन करना है।

बिहार चुनाव: तेजस्वी बनाम आयोग!

We-will-defeat-those-who-talk-of-hatred-with-love-and-development-Tejashwi-Yadav

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मतदाता सूची को लेकर उठा सियासी तूफान अभी शांत नहीं हुआ था कि बिहार में भी ऐसे ही माहौल की तैयारी हो गई है। राजद नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने बीते दिन मतदाता सूची की पुनरीक्षण प्रक्रिया को सरकार की साजिश करार दिया। हालांकि, चुनाव आयोग पहले ही तमाम राजनीतिक दलों की ओर से लगाए गए ऐसे आरोपों को सिरे से खारिज करता आया है।
​ 

2003 के बाद पहली बार बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण हो रहा है, जिसका मकसद पिछले दो दशकों में जुड़े वोटरों के दस्तावेजों का सत्यापन करना है। यह प्रक्रिया सामान्य पुनरीक्षणों से कहीं अधिक कठोर और विस्तृत है।

तेजस्वी यादव का आरोप: राजद नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने इस प्रक्रिया को राजनीतिक साजिश करार दिया है। उनका कहना है कि यह गरीब, दलित, पिछड़े, मुसलमान और युवाओं के नाम मतदाता सूची से हटाने की कोशिश है। साथ ही उन्होंने इसे एनआरसी जैसे कदम की शुरुआत बताया।

चुनाव आयोग का पक्ष: आयोग का दावा है कि यह एक नियत प्रक्रिया है, जिसका मकसद मतदाता सूची को अद्यतन और पारदर्शी बनाना है। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया है कि किसी के पास दस्तावेज़ न होने की स्थिति में दावा-आपत्ति के माध्यम से भौतिक सत्यापन का विकल्प उपलब्ध है।

तकनीकी आधार और आधार लिंकिंग पर विवाद: हालांकि आधार को वोटर आईडी से जोड़ने की कोशिश की जा रही है, लेकिन आयोग का कहना है कि कई विदेशियों ने फर्जी तरीके से आधार बनवा लिए हैं, इसलिए आधार को अंतिम प्रमाण नहीं माना जा सकता।

भौगोलिक व सामाजिक चुनौतियाँ: बिहार का लगभग 73% क्षेत्रफल बाढ़ प्रभावित हो सकता है। ऐसे में कागज़ों की माँग और भौतिक सत्यापन की प्रक्रिया बेहद कठिन और समय-संवेदी हो सकती है।

राजनीतिक महत्व: यह पूरा घटनाक्रम आगामी विधानसभा चुनाव (अक्टूबर-नवंबर 2025) से पहले हो रहा है। ऐसे में इसे राजनीतिक ध्रुवीकरण और जनाधार की परीक्षा के रूप में भी देखा जा रहा है।

यह पुनरीक्षण न तो पूरी तरह से गलत है और न पूरी तरह से दोषहीन। चुनाव आयोग को पारदर्शिता और समावेशन के बीच संतुलन साधना होगा, वहीं राजनीतिक दलों को जनता की सुविधा व अधिकार सुनिश्चित कराने की दिशा में संवाद का रास्ता अपनाना चाहिए।

​यह भी पढ़ें-

उत्तराखंड में भाजपा अध्यक्ष बदलने की तैयारी, एक जुलाई को होगा ऐलान!

Exit mobile version