मुंबई में हुए बीईएसटी वर्कर्स’ को-ऑपरेटिव क्रेडिट सोसायटी चुनाव में ठाकरे बंधुओं की पहली संयुक्त कोशिश बुरी तरह नाकाम रही। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने मिलकर ‘उत्कर्ष पैनल’ उतारा था, लेकिन नतीजों में उन्हें एक भी सीट नहीं मिली। कभी श्रमिक संगठनों और महानगरपालिका की राजनीति में दबदबा रखने वाले ‘ठाकरे ब्रांड’ के लिए यह हार बड़ा झटका मानी जा रही है।
मंगलवार (१९ अगस्त) देर रात घोषित परिणामों के अनुसार, शशांक राव के गुट ने 21 में से 14 सीटों पर कब्जा जमाया। वहीं, भाजपा नेता प्रसाद लाड के ‘श्रमिक पैनल’ ने 7 सीटें हासिल कीं। ठाकरे भाइयों का संयुक्त मोर्चा खाता भी नहीं खोल सका। यह हार खास मायने रखती है क्योंकि बीईएसटी यूनियन पर कभी ठाकरे परिवार का कामगार सेना का दबदबा हुआ करता था।
राज और उद्धव ठाकरे का यह गठजोड़ बीएमसी चुनावों से पहले एक ट्रायल रन माना जा रहा था। दोनों दलों की कोशिश थी कि संयुक्त ताकत दिखाकर मुंबई की राजनीति में अपनी पकड़ दोबारा मजबूत करें। लेकिन इस शर्मनाक हार ने राजनीतिक गलियारों में सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या ठाकरे नाम अब भी उतना असरदार है, जितना पहले हुआ करता था।
चुनाव परिणामों के बाद प्रसाद लाड ने सोशल मीडिया पर ठाकरे भाइयों पर निशाना साधते हुए लिखा, “ब्रांड के मालिक एक भी सीट नहीं जीत पाए। उन्हें जगह दिखा दी।” इस बयान को ठाकरे परिवार की साख पर सीधे प्रहार के तौर पर देखा जा रहा है।
जागा दाखवली…. pic.twitter.com/waPJMkMuL9
— Prasad Lad (@PrasadLadInd) August 19, 2025
विश्लेषकों का मानना है कि यह हार सिर्फ बीईएसटी चुनाव तक सीमित नहीं है, बल्कि आने वाले स्थानीय निकाय चुनावों पर भी इसका असर पड़ेगा। ठाकरे भाइयों ने इस चुनाव को ताकत और एकता दिखाने का मंच बताया था, लेकिन नतीजे उनके लिए चिंता का सबब बन गए हैं। बीएमसी चुनाव से पहले यह हार ठाकरे बंधुओं के लिए न केवल राजनीतिक बल्कि प्रतिष्ठा की भी करारी चोट है। अब सवाल यही है कि क्या वे आगामी चुनावों में अपनी पकड़ और खोया हुआ जनाधार वापस ला पाएंगे या ‘ठाकरे ब्रांड’ का असर सचमुच घट चुका है।
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