लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भाजपा को मिली हार के बाद प्रदेश सब कुछ सही नहीं चल रहा है|राज्य राजधानी लखनऊ में भाजपा कार्यसमिति की बैठक हुई थी, जिसके बाद से यूपी का सियासी पारा चढ़ा हुआ है|इस बीच उत्तर प्रदेश के सियासी घटनाक्रम पर भाजपा के आलाकमान की प्रतिक्रिया भी सामने आई है|केशव मौर्य की राजनीतिक जमीन उतनी नहीं है जितना आलाकमान ने उन्हें सिर पर बिठा रखा है। वे 2012 में केवल एक बार विधानसभा और 2014 में लोकसभा चुनाव जीते। बाकी चुनाव वे हारते ही रहे। और तो और 2022 में भी वे पल्लवी पटेल से चुनाव हार गए।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की बैठक में प्रदेश दोनों उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक और केशव प्रसाद मौर्य के शामिल न होने पर पार्टी ने इसे अनुशासनहीनता माना है|लोकसभा चुनाव में मिली हार की समीक्षा करने को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश के कई जगहों पर पार्टी के नेताओं के साथ बैठक की थी, जिसमें दोनों ही उपमुख्यमंत्री नहीं पहुंचे थे|
बता दें कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अभी नीति आयोग की बैठक में मौजूद हैं|भाजपा मुख्यालय में कुछ ही देर में मुख्यमंत्री परिषद की बैठक होने वाली है|इस बैठक में भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री शामिल होंगे, पार्टी इन दो दिवसीय बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भी मौजूद रहेंगे|यह बैठक शनिवार और रविवार दो दिनों तक चलेगी|
इस बैठक के लिए उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक सहित कई भाजपा नेता पार्टी ऑफिस पहुंच चुके हैं|भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, राजस्थान की उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी, गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल, हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी भाजपा कार्यालय पहुंच चुके हैं|
प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पहले प्रयागराज मंडल में बैठक की थी, जिसमें उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य नहीं पहुंचे थे| इसके बाद मुरादाबाद में हुई बैठक में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी नहीं पहुंचे थे|इसके बाद मुख्यमंत्री योगी ने शुक्रवार (26 जुलाई 2024) को लखनऊ मंडल में बैठक की थी, जिसमें उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक नहीं पहुंचे थे|
उत्तर प्रदेश में भाजपा की गुटबाजी जारी है। एक तरफ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पार्टी के नेताओं को क्षेत्रवार बुलाकर उनसे मुलाकात का सिलसिला शुरू कर दिया है उनका मुख्य उद्देश्य आपसी समन्वय बनाने की है। दूसरी तरफ उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य के साथ उनके रिश्तों की तल्खी बरकरार है। प्रदेश कार्यसमिति की बैठक के बाद से मौर्य ने न तो योगी की बुलाई किसी बैठक में हिस्सा लिया है और न ही किसी कैबिनेट बैठक में|
मौर्य के हाव-भाव से झलकता है कि सूबे में सत्ता और संगठन दोनों में ही बदलाव होगा। योगी को हटाने की मुहिम 2021 में कोरोना काल में हुई थी। तब वे बच गए थे। पांच साल राज करने के बाद एक तो 2022 में विधानसभा में पार्टी की सीटें घटी, ऊपर से लोकसभा चुनाव में सूबे ने आलाकमान के मंसूबों पर पानी फेर दिया। समर्थक भले दलील दें कि योगी को हटाने से सूबे में भाजपा को नुकसान होगा। पर आलाकमान के लिए वे अनिवार्य नहीं हैं।
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