देश के सबसे बड़े सूबे में 2022 में विधानसभा चुनाव है। भाजपा-सपा, बसपा, कांग्रेस सहित अन्य दल जनसभाओं, प्रदर्शनों के साथ अपनी ताकत बढ़ाने में लगे हैं। कभी यूपी में सबसे ज्यादा सुरक्षित वोट बैंक वाली पार्टी बसपा कही जाती थी, लेकिन 2016 से बसपा में जो भगदड़ मची है। वो थमने का नाम नहीं ले रही है। बसपा से टूट के बाद बड़े नेताओं ने भाजपा, सपा, कांग्रेस में अपनी जगह बनाई है। बीते विधानसभा चुनाव में कई बड़े नेता भाजपा में शामिल हुए। बसपा में कई नेता पार्टी से अलग हुए हालांकि दलित वोट बैंक पर मायावती की पकड़ इतनी मजबूत रही की पार्टी सब चेहरों से हमेशा भारी रही। अब ऐसा नहीं है, बसपा से पहली कतार के सभी नेताओं ने बगावत कर अपना रास्ता बना लिया. सतीशचन्द्र मिश्रा को छोड़कर पूरा मंच खाली है. बसपा से अलग हुए ओबीसी और दलित वोटों पर भाजपा नजर लगाए है।बहुजन समाज पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष आर एस कुशवाहा ने बीते दिनों हाथी की सवारी छोड़कर साइकिल पर चलना मुफीद समझा. उन्होंने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया है. मुजफ्फरनगर से बहुजन समाज पार्टी के पूर्व सांसद कादिर राणा भी समाजवादी पार्टी की साइकिल पर सवार हो लिए हैं> इन नेताओं ने पार्टी छोड़ते हुए बसपा पर अपने मूल सिद्धांतों से समझौते का आरोप लगाया है>
आर एस कुशवाहा बसपा ही नहीं, अपनी बिरादरी के बड़े चेहरे माने जाते थे. 30 साल तक बहुजन समाज पार्टी में काम करने के बाद उन्होंने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया है। यूपी में भाजपा ओबीसी और दलित वोट बैंक पर अपनी नजर बनाए हुए है। संघ भी इस मुहिम में जुटा है की दलित वोट अपने खेमे में किया जाए. सूत्रों की माने तो संघ के पिछड़े चेहरों को मैदान में उतार दिया गया है. जो गोष्ठियों और जनसंपर्क कर सरकार की योजनाएं समझा रहे हैं। प्रदेश में दलित वोट बैंक लगभग 20 से 22 फीसदी है, जिसको साधने में भाजपा सफल हुई तो आने वाले चुनाव में एक बार फिर उसके लिए सत्ता आसान होगी. भाजपा का दावा रहा है की बीते चुनाव में ओबीसी और दलित वोट बड़े पैमाने में उनके खेमे में गए थे। कभी बसपा में नंबर दो की हैसियत रखने वाले पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दकी, पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य, पूर्व मंत्री इंद्र जीत सरोज, पूर्व मंत्री केके गौतम, पूर्व मंत्री आर के चौधरी, पूर्व विधायक गुरु प्रसाद मौर्या, पूर्व विधायक प्रवीन पटेल, पूर्व विधायक दीपक पटेल, पूर्व मंत्री रामअचल राजभर, पूर्व मंत्री लालजी वर्मा, पूर्व सांसद कपिल मुनि करवरिया, पूर्व मंत्री राकेश धर त्रिपाठी, पूर्व मंत्री शिवाकांत ओझा ऐसे सैकड़ों नाम हैं, जो पार्टी छोड़ गए।