चुनावी मौसम : गिरगिट की तरह बदलते टोपी और दल सियासत के महारथी

वर्ष 2012 में बसपा से विधायक रहे राजेश त्रिपाठी 2017 में बसपा का मोह त्याग भाजपा के पाले में आ गए। 2017 में इन्हें जीत नहीं मिली लेकिन भाजपा ने इनपर अपना ऐतबार कायम रखा और दोबारा से उन्हें प्रत्याशी बनाया।

चुनावी मौसम : गिरगिट की तरह बदलते टोपी और दल सियासत के महारथी

देश में 5 राज्यों के विधान सभा चुनाव वर्ष 2022 के शुरू होते ही इन राज्यों में चुनावी बयार बहने लगे हैं| विधायक बनने की लालसा में ये सियासत के महारथी गिरगिट की तरह टोपी और दल बदलते दिखाई दे रहे हैं|  कोई दो तो किसी ने तीन पार्टियों से समय-समय पर चुनानी ताल ठोक कर अपनी जीत पक्की की। अलग-अलग दलों से अपने आप को साबित कर चुके पूर्व सीएम वीर बहादुर सिंह के बेटे वर्तमान विधायक फतेह बहादुर सिंह की बात करें तो वह कांग्रेस से लेकर एनसीपी और फिर भाजपा से चुनावी ताल ठोंक चुके हैं। श्री सिंह की बसपा सरकार में भी खूब चली। वह उस सरकार में भी मंत्री रह चुके हैं।

फतेह बहादुर वर्ष 2012 में एनसीपी से लड़े और विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे। इसके बाद श्री सिंह ने वर्ष 2017 में भाजपा का दामन थाम लिया और कैम्पियरगंज से टिकट हासिल कर वर्ष 2017 में विधायक का ताज अपने नाम कर लिया। लगातार जीत देख भाजपा ने भी यहां टिकट देने में कोई देरी नहीं की और दोबारा से फतेह बहादुर को कैम्पियरगंज से ही अपना प्रत्याशी बनाया है।वहीं बात करें चिल्लूपार सीट की तो यहां से दो महारथी दो प्रमुख दलों से चुनाव लड़ चुके हैं। यहां से इकलौते गैर-भाजपा विधायक विनय शंकर तिवारी वर्ष 2017 में बसपा से विधायक बनकर विधानसभा पहुंचे थे।​​

चुनाव के ठीक कुछ महीने पहले समीकरण बदला तो बसपा छोड़ सपा में आ गए। सपा ने भी मौके की नजाकत को देखते हुए श्री त्रिपाठी को चिल्लूपार से अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया। इसी क्षेत्र से 2012 में बसपा से विधायक रहे राजेश त्रिपाठी वर्ष 2017 में बसपा का मोह त्याग भाजपा के पाले में आ गए। वर्ष 2017 में इन्हें जीत नहीं मिली लेकिन भाजपा ने इनपर अपना ऐतबार कायम रखा और दोबारा से उन्हें प्रत्याशी बनाया।

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