दिल्ली में कांग्रेस नेतृत्व ने बिहार में पार्टी के बेहद ख़राब प्रदर्शन के चलते गंभीर समीक्षा शुरू की है। पार्टी सुप्रीमो राहुल गांधी और कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने नई दिल्ली स्थित खड़गे के आवास पर बिहार इकाई के नेताओं के साथ एक अहम बैठक की, जिसमें राज्य की मौजूदा राजनीतिक स्थिति और हाल में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की करारी हार पर विस्तार से चर्चा हुई।
बैठक में बिहार कांग्रेस के प्रमुख नेता राज्य अध्यक्ष राजेश राम और बिहार के लिए पार्टी प्रभारी कृष्णा अल्लावरु ने भाग लिया। यह दूसरी बार है जब कांग्रेस के शीर्ष नेता बिहार चुनाव में हुई पार्टी की ‘डिसिमेशन’ पर सामूहिक रूप से चर्चा कर रहे हैं। बैठक में कई नेताओं ने स्वीकार किया कि “टिकट वितरण में देरी, लगातार अंदरूनी खींचतान और मतभेदों ने पार्टी के अभियान को कमजोर कर दिया।”
कई नेताओं ने इस बात को ऊपर उठाया कि एनडीए सरकार की महिलाओं को सीधे लाभ पहुंचाने वाली ₹10,000 की प्रोत्साहन योजना ने भी पार्टी को अप्रत्याशित नुकसान पहुंचाया। इस योजना का व्यापक असर ग्रामीण और अति-पिछड़े वर्गों की महिला मतदाताओं पर दिखाई दिया, जिनके समर्थन से एनडीए ने कई सीटों पर निर्णायक बढ़त बनाई।
इस चुनाव में कांग्रेस ने 61 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन पार्टी केवल छह सीटें ही जीत पाई। इसका मतलब है कि पार्टी की स्ट्राइक रेट 10% से भी कम रही। जो पिछले कई चुनावों की तुलना में सबसे खराब प्रदर्शन में से एक है। गठबंधन की प्रमुख पार्टी आरजेडी ने भी बेहद निराशाजनक प्रदर्शन किया और 143 सीटों में से मात्र 25 पर जीत दर्ज की।
महागठबंधन के अन्य छोटे सहयोगियों, CPI(एमएल) लिबरेशन, भारतीय इंक्लूसिव पार्टी (IIP), और CPI(एम) को कुल मिलाकर केवल चार सीटें मिलीं। इस तरह पूरे महागठबंधन को 243 में से सिर्फ 35 सीटें ही हासिल हुईं।
इसके उलट, एनडीए ने राज्य में एकतरफा जीत हासिल की और 200 से अधिक सीटें अपने नाम कीं। बीजेपी 89 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी, जबकि नीतीश कुमार की जेडीयू ने 85 सीटें जीतीं। चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) ने 19 सीटों पर अच्छा प्रदर्शन दिखाया। जीतन राम मांझी की हम (सेक्युलर) ने पांच सीटें जीतीं और उपेंद्र कुशवाहा की रालमो ने चार सीटों पर जीत दर्ज की।
बैठक में मौजूद नेताओं ने इस हार को आत्ममंथन का गंभीर समय बताया और संगठन को ज़मीनी स्तर पर मज़बूत करने, स्थानीय नेतृत्व में तालमेल बढ़ाने और टिकट वितरण की प्रक्रिया को समयबद्ध व पारदर्शी बनाने की जरूरत पर जोर दिया।
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