भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में तल्खी कोई नई बात नहीं, लेकिन जब सियासी गलियारों से बारूद भरे बयान आने लगें, तो मसले सिर्फ कूटनीतिक नहीं रहते। महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हुसैन दलवई ने शनिवार (3 मई)को एक ऐसा ही विवादित बयान देकर देश की राजनीति में हलचल मचा दी। सरकार द्वारा पाकिस्तानी यूट्यूब चैनलों पर लगाए गए बैन का समर्थन करते हुए दलवई ने सुझाव दिया कि “आरएसएस के लोगों को ट्रेनिंग देकर पाकिस्तान में बम ब्लास्ट करवाया जाए।” यह बयान न केवल असंवेदनशील है, बल्कि एक जिम्मेदार लोकतंत्र में अस्वीकार्य भी।
यह सच है कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद भारत के लिए एक स्थायी खतरा रहा है। पाकिस्तान की जमीन से संचालित आतंकी संगठनों ने उरी, पुलवामा, और मुंबई जैसे हमलों को अंजाम दिया है। ऐसे में केंद्र सरकार का यूट्यूब चैनलों पर बैन लगाना एक रणनीतिक कदम माना जा सकता है। दलवई ने इस फैसले का समर्थन करते हुए कहा, “पाकिस्तान में बच्चों को पकड़कर आतंकवाद की ट्रेनिंग दी जाती है और देश में आतंकवाद फैलाने का काम किया जाता है। यह बिल्कुल गलत है। पाकिस्तान के पास सीधे तौर पर लड़ाई करने की हिम्मत नहीं है। सरकार से मेरा कहना है कि आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) के लोग भारत में पाकिस्तान और मुसलमानों के खिलाफ बहुत बोलते हैं। ऐसे में आरएसएस के लोगों को ट्रेनिंग देकर पाकिस्तान में बम ब्लास्ट करवाने के लिए तैयार किया जाए।”
हुसैन दलवई का यह भी कहना कि पाकिस्तान में “बच्चों को पकड़कर आतंकवाद की ट्रेनिंग दी जाती है”, और “पाकिस्तान के पास सीधी लड़ाई की हिम्मत नहीं है”, एक सामान्य राजनीतिक बयान हो सकता था। परंतु जब वे उसी सांस में आरएसएस को ट्रेनिंग देकर ‘पाक में ब्लास्ट’ कराने की बात कहते हैं, तो यह देश की आंतरिक सुरक्षा और लोकतांत्रिक मूल्यों पर एक गैर-जिम्मेदाराना हमला जैसा लगता है।
सवाल यह भी है कि क्या किसी नेता को, वह भी एक बड़े राष्ट्रीय दल से जुड़ा हुआ व्यक्ति, इस स्तर की आग उगलनी चाहिए? भले ही उनके कई बिंदुओं में तथ्यात्मक सच्चाई हो, लेकिन ‘बम ब्लास्ट’ जैसी भाषा उनके पूरे बयान को कटघरे में खड़ा कर देती है।
इस पूरे बयान में सबसे चिंताजनक बात यह रही कि उन्होंने एक सांस्कृतिक-सामाजिक संगठन को ‘बम धमाके’ के लिए प्रशिक्षित करने की बात कही। अगर इसी तरह कोई और नेता किसी दूसरे समुदाय या संगठन को आतंकवाद से जोड़ता, तो पूरा राजनीतिक तंत्र हिल गया होता। ऐसे में कांग्रेस को यह तय करना होगा कि वह इस बयान से खुद को अलग करती है या मौन समर्थन देती है।
देश को ज़रूरत है ठोस नीति, स्पष्ट रणनीति और संयमित भाषा की — न कि बयानबाज़ी की जो नफरत को हवा दे और दुश्मन को फायदा। क्या कांग्रेस इस बयान पर कार्रवाई करेगी, या एक बार फिर चुप्पी साधेगी?
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