दिल्ली चुनाव परिणाम: आत्म मंथन में केजरीवाल, ‘आप’ में घमासान!

भाजपा ने अपने प्रचार के समय से ही केजरीवाल और उनकी पार्टी पर जो सवाल उठाये थे उसका जवाब देने में भी वह असफल रहे।

दिल्ली चुनाव परिणाम: आत्म मंथन में केजरीवाल, ‘आप’ में घमासान!

Delhi election results: Kejriwal in introspection, conflict within AAP!

दिल्ली चुनाव के नतीजों के बाद जहां एक तरफ भाजपा के खेमे में जश्न का माहौल है वहीं दूसरी ओर आप के खेमे सन्नाटा पसरा हुआ है। आम आदमी पार्टी की इतनी बुरी हार के बाद अब यह समझ नहीं आ रहा है कि कहां, कब, कैसे, और क्या गलती हो गयी की दिल्ली की जनता ने केजरीवाल को नकार दिया।

विशेषज्ञों के अनुसार पिछले 11 साल में जिस तरह के हालात बने थे उससे परेशान होकर लोगों में काफी आक्रोश था। आम आदमी पार्टी के झूठे वायदे, उनकी नाकामयाबी, मौलिक सुविधाएं न दे पाने और यमुना को साफ़ ना कर पाने की वजह से ही आप की आज यह दुर्गति हुई है। वही भाजपा ने अपने प्रचार के समय से ही केजरीवाल और उनकी पार्टी पर जो सवाल उठाये थे उसका जवाब देने में भी वह असफल रहे।

ऐसा नहीं है कि एकदम से भाजपा की लहर आई और आप साफ़ हो गयी। पिछले कुछ महीनों से चल रही दिल्ली की राजनीति में कई ऐसे पड़ाव आये जिससे जनता को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा। दिल्ली को झीलों का शहर बनाने के वायदे पर भी केजरीवाल घिरते नज़र आये| जहां उन पर तंज़ करते हुए नेताओं और जनता ने कहा कि बरसात के मौसम में घुटनो तक भर जाने वाली सड़को को ही वह उदयपुर समझ रहे होंगे। इसके अलावा अपने पार्टी के दिग्गज नेताओं पर भ्रष्टाचार के लगे आरोप और उनकी प्रतिक्रियाओं की वजह से भी केजरीवाल की कट्टर ईमानदार वाली छवि को आहत पहुंची।

खुद शराब घोटाले में जेल जाने वाले केजरीवाल ने जब इस्तीफ़ा देने से मना कर दिया और जेल से ही सरकार चलाने का फैसला किया तो देश में नेताओं द्वारा कानून व्यवस्था के ऐसे हनन को लेकर जनता में खूब नाराज़गी देखने को मिली। साथ ही मनीष सिसोदिया, जो दिल्ली के उप मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री रह चुके हैं, उन पर भी भ्रष्टाचार और शिक्षा में दावे के मुताबिक उपलब्धियां न दे पाने का आरोप लगा था।

भ्रष्टाचार का प्रमाण बना अरविन्द केजरीवाल का 45 करोड़ से भी ज़्यादा महंगा शीशमहल भी सुर्ख़ियों में खूब रहा। जनता की गाढ़ी कमाई से पैसे चुराकर अपने लिए शीश महल बनवाने के आरोप को भी केजरीवाल पूरी तरह ख़ारिज नहीं कर पाए। यह एक ऐसा मुद्दा था, जिसने केजरीवाल की ईमानदार छवि को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया। कोविड के समय जहां जनता के पास मौलिक सुविधाएं नहीं थी उस बीच अपने घर को बनवाने का यह आरोप केजरीवाल और उनकी पार्टी को बहुत भारी पड़ा।

एक प्रमुख मुद्दा जिस पर आम आदमी पार्टी को हर तरफ से घेरा गया, वो था दिल्ली की सफाई। आप की राज्य सभा सांसद स्वाति मालीवाल खुद ही दिल्ली सरकार के विरुद्ध जनता के साथ सड़कों पर उतरी दिखाई दी। सरकार से लगातार सवाल पूछने और जनता के हित को सामने रखने के लिए कई बार उनका केजरीवाल से आमना सामना हुआ।

पिछले साल केजरीवाल के घर में अपने ऊपर हुए अन्याय और अत्याचार को लेकर सुर्ख़ियों में आयी स्वाति मालीवाल ने चुनाव के परिणाम के दौरान मीडिया से बात की और दिल्ली की जनता को बधाई दी कि उन्होंने एक भ्रष्टाचारी और पापी व्यक्ति को सत्ता से खदेड़ दिया है।

संजय सिंह, जो संसद में सरकार को हमेशा घेरते नज़र आते हैं, इस समय कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पा रहे हैं। लाज़मी है कि दिल्ली के जनादेश को पचा पाना अभी ‘आप’ के लिए थोड़ा मुश्किल है, लेकिन इस कड़वी गोली को खाकर ही वे अपनी कमियों पर ध्यान दे पाएंगे।

अब नतीजे आने के बाद पार्टी का अगला कदम क्या रहेगा यह देखना दिलचस्प होगा| क्योंकि सत्ता से बाहर की जा चुकी आम आदमी पार्टी के कई नेता एक तरफ जेल जाने को हैं और दूसरी ओर पार्टी में चल रही अंदरूनी सांठ गांठ विपक्ष के रूप में उन्हें कमज़ोर कर रही है।

मीडिया के कई वरिष्ठ पत्रकारों की माने तो आम आदमी पार्टी को दिल्ली की जनता ने पूरी तरह नकार दिया है और अब भाजपा के लिए दिल्ली की जनता को लुभाना प्राथमिक रूप में मुश्किल नहीं होगा। एक वर्ग का कहना यह भी है कि आप की हार की वजह भाजपा नहीं बल्कि खुद आप ही है, जिसका फायदा भाजपा सुचारू रूप से नहीं उठा पायी| वरना भाजपा करीब 50 से अधिक सीटों पर जीत सकती थी।

सत्ता छिन जाने के बाद अब केजरीवाल एक्शन मोड पर आ गए हैं। नए विधायकों समेत कई बड़े नेताओं के साथ मीटिंग की गयी। हार के बाद अब अस्तित्व बचाने की होगी लड़ाई, लेकिन आपसी दूरियों को कैसे दूर करेंगे केजरीवाल, यह सवाल सभी के मन में है। इसी के साथ इंडिया अलायन्स के नेताओं ने भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नारे ‘बटेंगें तो कटेंगे’ को भी मानना शुरू कर दिया है।

‘उबठा’ शिवसेना के नेता संजय राऊत ने कहा कि अलग अलग लड़ के आप और कांग्रेस को बहुत नुक्सान हुआ है। यदि दोनों पार्टियां साथ लड़ रही होती तो परिणाम कुछ और हो सकते थे। वहीं उमर अब्दुल्ला ने ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए कहा कि अलग-अलग लड़ने से कोई उपलब्धि हासिल नहीं होगी। दिल्ली की राजनीति में अब कैसा मोड़ आएगा वो विधान सभा तक पहुंचे नेताओं के आने पर ही पता चलेगा।

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