बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर चल रहे विवाद के बीच चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है। आयोग ने वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका को खारिज करने की मांग की है। उपाध्याय ने देशभर में संसदीय, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनावों से पहले समयबद्ध तरीके से SIR कराने का निर्देश देने की मांग की थी।
चुनाव आयोग ने अपने हलफनामे में कहा कि “देशभर में चरणबद्ध तरीके से SIR कराने का फैसला चुनाव आयोग का विशेषाधिकार है। अदालतें इस तरीके से SIR का निर्देश नहीं दे सकतीं।” आयोग ने साफ किया कि मतदाता सूची की पवित्रता और अखंडता बनाए रखना उसका वैधानिक अधिकार है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने भी टिप्पणी की कि यदि अदालत इस तरह का आदेश देती है, तो यह चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण होगा। अदालत को आयोग की कार्यप्रणाली पर हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
आयोग ने हलफनामे में बताया कि 24 जून 2025 को विभिन्न राज्यों में SIR कराने का निर्णय लिया गया है। इसके तहत 5 जुलाई 2025 को बिहार को छोड़कर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को प्री-रिवीजन गतिविधियां शुरू करने के निर्देश जारी किए गए। आयोग की अधिसूचना के अनुसार अंतिम मतदाता सूची 30 सितंबर को प्रकाशित की जाएगी।
फिलहाल बिहार में मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने के लिए 11 वैध दस्तावेज निर्धारित किए गए हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि ‘आधार’ को अब पासपोर्ट, जन्म प्रमाण पत्र जैसे अन्य दस्तावेजों के समान ही वैध पहचान पत्र माना जाएगा।
क्या है बिहार SIR विवाद?
बिहार में यह विशेष गहन पुनरीक्षण 2003 के बाद पहली बार कराया जा रहा है। विपक्षी दलों ने इस प्रक्रिया को लेकर आरोप लगाया है कि इसका उद्देश्य कुछ वर्गों को मताधिकार से वंचित करना है। वहीं, चुनाव आयोग का कहना है कि SIR का मकसद मृत व्यक्तियों, डुप्लीकेट पहचान पत्र धारकों और अवैध अप्रवासियों के नाम मतदाता सूची से हटाना है, ताकि सूची को साफ और विश्वसनीय बनाया जा सके।
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