गत सप्ताह अमेरिका के राष्ट्रिय सचिव एंटनी ब्लिंकन ने 200 देशों पर मानवाधिकारों पर अमरीका की बनाई रिपोर्ट को पढ़ा। यह रिपोर्ट मानवाधिकारों से जुड़े कानूनों को बेहतर बनाने के नजरिए से जारी की गई थी, जिसमें भारत का जिक्र होते ही भारत के राष्ट्रीय विचार और सार्वभौमत्व के अधिकार से लिए निर्णयों पर एंटनी ब्लिंकन आग उगलने लगे।
अपनी रिपोर्ट में उन्होंने भारत के पूर्वी राज्यों में जाति के परिपेक्ष्य में हुए दंगो का जिक्र करते हुए भारत सरकार पर इल्जाम गढ़ना शुरु किया। बीबीसी ने प्रोपोगेंडे के तहत 2002 के गुजरात दंगो पर बनायी डॉक्यूमेंटरी को भारत में बैन किया गया था। साथ ही साथ टैक्स से बचने की कोशिश करने वाली बीबीसी पर भारतीय सरकार ने नकेल कसी थी। इसका जिक्र करते हुए एंटनी ब्लिंकन ने भारत में पत्रकारों के स्वतंत्रता पर हमला होने की बात की।इसी के साथ भारत में अल्पसंख्यकों के खिलाफ अभियान चलाए जा रहें है | साथ ही में एंटी कन्वर्जन कानूनों को लक्ष्य करते हुए इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला बताया था।
अमेरिका की इसी रिपोर्ट को जवाब देते हुए भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने अमेरिका को खरी खोटी सुनाई। उन्होंने कहा, अमरीका की यह रिपोर्ट बेहद पक्षपातपूर्ण है और यह भारत के बारे में अमेरिका की ख़राब समझ को दिखाती है। हम ऐसी रिपोर्ट्स को महत्व नहीं देते और मीडिया से भी ऐसा ही करने का आग्रह करते है। उन्होंने कहा, यह रिपोर्ट स्पष्ट रूप से वोट बैंक के विचारों और एक अनुदेशात्मक दृष्टिकोण से प्रेरित है। इसलिए हम रिपोर्ट को अस्वीकार करते हैं। यह प्रक्रिया अपने आप में आरोप-प्रत्यारोप, गलत बयानी, तथ्यों का पक्षपात के साथ चयनात्मक उपयोग, पक्षपाती स्रोतों पर निर्भरता और मुद्दों का एकतरफा बातों का मिश्रण है।
आगे बढ़कर रणधीर जसवाल ने कहा, “यह भारतीय विधायकों द्वारा बनाए गए कानूनों और विनियमों की वैधता पर सवाल उठाते हुए, एक पूर्वनिर्धारित कहानी को आगे बढ़ाने के लिए चुनिंदा घटनाओं को चुनता है।” अर्थात इस रिपोर्ट के जरिए भारत के 140 करोड़ लोगों के बीच से चुने गए लीडरों ने बनाए कानूनों पर अमेरिका अपना वर्चस्व निर्माण करने की नाकाम कोशिश करता दिखा। अपनी सॉफ्ट पावर का दुर्व्यवहार करते हुए युएस की इस रिपोर्ट को भारत के सार्वभौमत्व पर हमला मानना चाहिए।
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