जरांगे फैक्टर हुआ बेअसर?, ‘न भूतो न भविष्यति’ महायुति कैसे हुई हावी !

भाजपा की लहर में कई दिग्गजों और पार्टियों की जमीन खिसक गई|उनके अस्तित्व की लड़ाई ख़त्म होती दिख रही है| दूसरी ओर, चर्चा शुरू हो गयी है कि मनोज जरांगे पाटिल फैक्टर भी बेअसर हो गया है| इसका क्या कारण हैं?

जरांगे फैक्टर हुआ बेअसर?, ‘न भूतो न भविष्यति’ महायुति कैसे हुई हावी !

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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का नतीजा ‘न भूतो न भविष्यति’ नतीजे ने कई दिग्गजों को चौंका दिया|भाजपा एक बड़ी अंतर से जीत गई|ईवीएम से वोट डाले गए| लोगों ने खूब वोट किये|भाजपा की लहर में कई दिग्गजों और पार्टियों की जमीन खिसक गई|उनके अस्तित्व की लड़ाई ख़त्म होती दिख रही है| दूसरी ओर, चर्चा शुरू हो गयी है कि मनोज जरांगे पाटिल फैक्टर भी बेअसर हो गया है| इसका क्या कारण हैं?

महाविकास अघाड़ी को किस कारण से नुकसान उठाना पड़ा?: मेरी ‘लाडली बहना’ योजना, इस योजना से महायुति को बड़ा समर्थन मिला। चुनावों से पहले शुरू की गई इस योजना ने ग्रामीण और शहरी महिलाओं के बीच महिलाओं में अच्छी छाप छोड़ी और उसे वोट में भी बदल दिया। महिला वोटर बढ़ने से महागठबंधन को फायदा हुआ।

छोटी जाति का गठजोड़: महागठबंधन केवल पारंपरिक मराठा और ओबीसी वोटों पर निर्भर नहीं था। छोटे सामाजिक समूहों को साथ लिया गया। चुनाव से पहले कुछ जातियों को आरक्षण देने के कदम से बड़ा संदेश गया|

वोट प्रतिशत बढ़ने से फायदा: महाराष्ट्र में शहरी इलाकों को छोड़कर बाकी जगहों पर जोरदार वोटिंग हुई| वोट प्रतिशत बढ़ा| यह पहली बार है कि इतना बड़ा मतदान हुआ। देखा गया कि ग्रामीण इलाकों से भाजपा-महायुती को भारी वोट मिले|

संघ की माइक्रो प्लानिंग: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की माइक्रो प्लानिंग से भाजपा को काफी फायदा हुआ है| छोटी छोटी बैठकें, स्वयंसेवकों का मतदाताओं के साथ सीधा जनसंपर्क ने इस बंपर जीत में प्रमुख भूमिका निभाई।

महाविकास अघाड़ी में समन्वय की कमी: महाविकास अघाड़ी में समन्वय की भारी कमी देखी गयी| तीनों पार्टियों में कोई तालमेल नहीं था| कांग्रेस और उद्धव सेना के बीच विवाद बेहद तनावपूर्ण था| वह लोगों के बीच विश्वास पैदा करने में सफल नहीं हुए|

जरांगे फैक्टर का नहीं चला जादू : विधानसभा चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद जरांगे खेत-खलिहानों में अंत तक उलझे रहे। नेता की यह उलझन मतदाताओं को स्वीकार नहीं हुई| ऐसा लग रहा था जैसे वे भूमिकाएं बदल रहे हों। बार-बार रुख बदलने के बाद मराठा मतदाताओं ने महा गठबंधन की ओर रुख किया।

असमंजस की स्थिति: मनोज जरांगे ने बार-बार ‘अभी छोड़ो और लड़ो’ के नारे लगाए। लेकिन बाद में ये सामने नहीं आया कि वो किसके पक्ष में हैं और किसके खिलाफ अगर उनका निशाना फडनवीस और भुजबल थे तो उन्हें सीधे मैदान में उतरना चाहिए था|

महायुति के लिए एक कदम आगे: मनोज जरांगे पाटिल के प्रभाव को कम करने के लिए, महायुति ने यथासंभव अधिक से अधिक मराठा उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। ये पारी बेहद असरदार रही| 46 निर्वाचन क्षेत्रों से 29 मराठा उम्मीदवार जीते। मराठा मतदाताओं ने महाविकास अघाड़ी के खिलाफ वोट किया|

फडनवीस पर निशाना साधा: महागठबंधन में जरांगे की आलोचना देवेन्द्र फडनवीस पर ही निशाना साधा। इसे मौखिक रूप से कहने के लिए छगन भुजबल पर्याप्त थे। इन सभी घटनाक्रमों में ओबीसी एकजुट होकर भाजपा के साथ खड़ा रहा|

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