सहयोगी दलों की कांग्रेस पर प्रेशर पॉलिटिक्स! इंडिया गठबंधन की बैठक टली   

सहयोगी दलों की कांग्रेस पर प्रेशर पॉलिटिक्स! इंडिया गठबंधन की बैठक टली   

पांच राज्यों के आये नतीजे के बाद इंडिया गठबंधन में घमासान मचा हुआ है। 3 दिसंबर को ही मतगणना के दौरान कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने ऐलान किया था कि छह दिसंबर यानी बुधवार को विपक्षी गठबंधन की बैठक होगी। मंगलवार को कहा गया कि यह बैठक टल गई है और अब यह बैठक कब होगी,यह अभी निश्चित नहीं है। खबरों के अनुसार,दावा किया जा रहा है कि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, अखिलेश यादव , हेमंत सोरेन के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी इस बैठक में शामिल होने से इंकार कर दिया था। इसलिए इस बैठक को टाल दिया गया है।

गौरतलब है कि, 3 दिसंबर को मतगणना के दौरान ही मल्लिकार्जुन खड़गे ने 6 दिसंबर को इंडिया गठबंधन की बैठक बुलाई थी। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने बहुमत के साथ जीत दर्ज की है, जबकि कांग्रेस को इन तीनों राज्यों में करारी हार हुई है। इसके बाद  बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि उन्हें इंडिया गठबंधन किन जानकारी नहीं है। उनका कहना था कि पहले से ही शेड्यूल तय है, जिसे वे नहीं बदल सकती है। माना जा रहा था कि ममता बनर्जी का प्रतिनिधि बैठक में शामिल हो सकता था।
इसी तरह से नीतीश कुमार द्वारा भी समय का हवाला दिया गया था। हालांकि, कहा गया था कि इंडिया गठबंधन की बैठक में ललन सिंह और संजय झा के मौजूद रह सकते थे। जबकि, समाजवादी पार्टी की ओर से रामगोपाल यादव के आने का अनुमान था। इस बैठक में झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी आने से इंकार किया था।
तीन राज्यों में कांग्रेस को मिली हार की वजह से विपक्ष के नेता पार्टी से नाराज है। मध्य प्रदेश में अखिलेश यादव कांग्रेस से सीट चाहते थे, लेकिन कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में  किसी भी पार्टी से गठबंधन करने से इंकार कर दिया था, जिसकी वजह से अखिलेश यादव ने मध्य प्रदेश की 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था। हालांकि उनकी पार्टी ने एक भी सीट पर जीत दर्ज नहीं की है। माना जा रहा है कि मध्य प्रदेश में  कई सीटों पर सपा ने कांग्रेस को भारी नुकसान पहुंचाया है।
चार नेताओं के बैठक में शामिल नहीं होने को प्रेशर पॉलिटिक्स का हवाला दिया जा रहा है। कहा जा रहा है कि तीन राज्यों में कांग्रेस की करारी हार के बाद अब गठबंधन के सहयोगी दल दबाव बनाना चाहते हैं। ये दल अपने अपने राज्यों में  ज्यादा से ज्यादा लोकसभा सीटों की  मांग कर सकते हैं। मना जा रहा है कि कांग्रेस के पास और कोई चारा भी नहीं है। उसे अपने सहयोगी दलों की मांग को मानना पद सकता है।
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