संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि पी. हरीश ने पाकिस्तान की ‘कट्टर मानसिकता’ की आलोचना करते हुए स्पष्ट कहा कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर का मुद्दा उठाने से न तो सीमा पार आतंकवाद को सही ठहराया जा सकता है और न ही यह बदल सकता है कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है।
हरीश यह बयान उस समय दे रहे थे जब पाकिस्तान की पूर्व विदेश सचिव तहमीना जंजुआ ने महासभा की एक अनौपचारिक बैठक में कश्मीर को लेकर टिप्पणी की। यह बैठक इस्लामोफोबिया के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने के लिए आयोजित की गई थी।
भारत का दो टूक जवाब:
भारतीय राजदूत हरीश ने कहा, “जैसा कि उनकी आदत है, पाकिस्तान के पूर्व विदेश सचिव ने आज भारतीय केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर का अनुचित संदर्भ दिया।” उन्होंने आगे कहा कि बार-बार यह मुद्दा उठाने से पाकिस्तान का दावा सही नहीं हो जाएगा, न ही इससे सीमा पार आतंकवाद को उचित ठहराया जा सकता है।
उन्होंने पाकिस्तान पर निशाना साधते हुए कहा, “इस देश की कट्टर मानसिकता और कट्टरता का रिकॉर्ड किसी से छिपा नहीं है।” हरीश ने स्पष्ट शब्दों में कहा, “ऐसे प्रयास इस सच्चाई को नहीं बदल सकते कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा था, है और हमेशा रहेगा।”
पाकिस्तान की पुरानी रणनीति
संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर को लेकर पाकिस्तान अक्सर अकेला नजर आता है। जब भी उसके प्रतिनिधियों को मंच मिलता है, वे कश्मीर का मुद्दा उठाते हैं, लेकिन किसी अन्य देश ने इस विषय को नहीं उठाया। 2017 से 2019 तक पाकिस्तान की विदेश सचिव रहीं तहमीना जंजुआ ने इस्लामोफोबिया पर आयोजित बैठक में बतौर आमंत्रित सदस्य अपनी बात रखी। उन्होंने कश्मीर की तुलना गाजा से करने की कोशिश की, जो पाकिस्तान की पुरानी रणनीति रही है। उन्होंने दावा किया, “इस्लामोफोबिया कब्जे वाले क्षेत्रों, जैसे कि भारतीय कब्जे वाले कश्मीर और फिलिस्तीन में मुसलमानों की भयानक हत्याओं का एक महत्वपूर्ण कारण है।”
इसके अलावा, उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से भारत में तथाकथित “लव जिहाद” और “गौरक्षकों” द्वारा की जाने वाली घटनाओं का भी उल्लेख किया। भारत ने पाकिस्तान की इन कोशिशों को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि कश्मीर पर झूठे दावे करने से न तो पाकिस्तान की स्थिति मजबूत होगी और न ही उसकी आतंकवाद समर्थक नीति पर पर्दा डाला जा सकेगा।
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