कर्नाटक विधानसभा चुनाव की घोषणा के साथ स्वाभाविक रूप से इस बात को लेकर उत्सुकता रही है कि महत्वपूर्ण दक्षिणी राज्य पर किसका शासन होगा। पिछली बार गठजोड़ कर सत्ता हासिल करने वाली भाजपा को इस साल अपनी सत्ता बरकरार रखने के लिए तमाम कोशिशें करनी हैं|
आरक्षण में बढ़ोतरी, धर्म के आधार पर वोटों के ध्रुवीकरण की कोशिश, ये सारे मुद्दे भाजपा के लिए रंग ला रहे हैं या फिर कांग्रेस इस बात का फायदा उठा रही है कि भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते भाजपा सरकार की बदनामी हो रही है| भाजपा और कांग्रेस की सत्ता का सारा हिसाब इस बात पर भी निर्भर करता है कि पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा के सेक्युलर जनता दल से किसे फायदा होता है या किसे नुकसान होता है।
कर्नाटक में हमेशा धर्म की जगह भाजपा, कांग्रेस और जनता दल के बीच त्रिकोणीय लड़ाई होती रही| इस साल भी अहम होगा त्रिकोणीय मुकाबले में कौन किसकी मदद करता है| 2018 में येदियुरप्पा की अल्पकालिक सरकार गिरने के बाद, कांग्रेस और धर्मनिरपेक्ष जनता दल की संयुक्त सरकार सत्ता में आई। लेकिन कांग्रेस और जनता दल के विधायकों के बीच फूट के कारण कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली सरकार 14 महीने के भीतर ही गिर गई। उसके बाद येदियुरप्पा के नेतृत्व में दोबारा सरकार बनी।
जुलाई 2021 में भाजपा ने येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाकर मूल जनता दल से आए बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री पद सौंप दिया| हालांकि बोम्मई लगभग दो साल तक मुख्यमंत्री रहे, लेकिन उनकी सरकार की छवि बहुत अच्छी नहीं थी। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फिर से अपनी सत्ता कायम रखने के लिए मैदान में उतरना पड़ा। पिछले दो महीनों में सात बार कर्नाटक का दौरा कर मोदी ने पर्यावरण निर्माण पर जोर दिया|
बोम्मई सरकार 40 प्रतिशत दलाली के आरोपों के लिए बदनाम थी। यह आरोप ठेकेदारों के संघ ने लगाया है। उसके बाद भाजपा के मंत्री के प्रतिशत सवाल से तंग आकर एक ठेकेदार ने आत्महत्या कर ली| राजधानी बेंगलुरु में जगह-जगह कांग्रेस की ओर से ’40 फीसदी दलाली सरकार’ और ‘पे चीफ मिनिस्टर’ जैसे पोस्टर लगाए गए थे|
बोम्मई भाजपा के बाहर से आए हैं। इस वजह से उनकी भाजपा के स्थानीय नेताओं से भी पटती नहीं थी| इसलिए भाजपा में कुछ गुट बोम्मई को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं| येदियुरप्पा की भी भूमिका अहम होगी। उनके पंखों को काटकर और लड़के को मंत्री पद से वंचित करके, उनके भी पुराने हिसाब चुकता करने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।
लिंगायत और वोकलिंग समुदायों के लिए आरक्षण में दो-दो प्रतिशत की वृद्धि की गई। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण बढ़ाया गया। भाजपा ने दलितों, अन्य पिछड़ी जाति लिंगायतों और अन्य सामाजिक समूहों के लिए आरक्षण बढ़ाकर विभिन्न सामाजिक समूहों का समर्थन हासिल करने की कोशिश की है। भाजपा इसका फायदा चुनाव में उठाने की कोशिश कर रही है|
भाजपा विरोधी नाराजगी के चलते कांग्रेस को सत्ता की उम्मीद है, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और प्रदेश अध्यक्ष डी. नेतृत्व के लिए शिवकुमार के बीच प्रतिस्पर्धा शुरू हो गई। हालांकि कांग्रेस मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार की घोषणा नहीं करेगी, लेकिन ऐसी संभावना है कि सिद्धारमैया और शिवकुमार आमने-सामने होंगे। इसका खामियाजा कांग्रेस को भुगतना पड़ सकता है|
इसलिए कर्नाटक चुनाव काफी दिलचस्प होने वाला है | यह कांग्रेस के लिए अस्तित्व की लड़ाई है। राहुल गांधी की सांसद बोली कर्नाटक के कोलार में उनके भाषण की वजह से रद्द हो गई| इस मुद्दे को उठाकर कांग्रेस इसका फायदा उठाने की कोशिश करने से नहीं चूकेगी। भाजपा की रणनीति लिंगायत समुदाय के समर्थन से दोबारा सत्ता में आने की है|
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