राजस्थान में गुर्जर आरक्षण आंदोलन का चेहरा रहे (रिटा.) किरोड़ी सिंह बैंसल का गुरुवार को निधन हो गया। लम्बे से बीमार चल रहे किरोड़ी सिंह बैंसल ने मणिपाल अस्पताल में अंतिम सांस ली। किरोड़ी सिंह बैंसल ऐसी शख्सियत थे की उनके एक इशारे पर पूरा राजस्थान थम जाता था। उन्होंने गुर्जर आंदोलन को ऐसी धार दी की आज तक उनके नाम की तूती बोलती थी। शिक्षक से लेकर कर्नल का तक सफर तय करने के बाद उन्होंने गुर्जर समाज के लिए काम करने का वीणा उठाया। जिसमें वे कामयाब रहे।
किरोड़ी सिंह बैंसल का जन्म राजस्थान के करौली जिले के मुड़िया गांव में हुआ था। शुरू में उन्होंने अपना करियर शिक्षक के तौर पर शुरू किया। लेकिन बाद में फ़ौज में चले गए। उनका फ़ौज में जाना संयोग नहीं था, बल्कि उनके पिता एक फौजी थे, जिसके बाद उस ओर उनका रुझान पैदा हुआ और राजपूताना राइफल्स में बतौर सिपाही भर्ती हुए। किरोड़ी सिंह बैंसल 1962 में भारत चीन और 1965 में भारत -पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध भी लड़ा। बताया जा रहा है कि 81 वर्षीय किरोड़ी बैंसल को 27 मार्च को तबीयत ख़राब होने पर जयपुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उन्हें सांस लेने में समस्या हो रही थी। कोरोना काल में किरोड़ी बैंसल दो बार कोरोना पॉसिटिव हो चुके थे।
उनके परिवार में तीन बेटे और एक बेटी। बेटी अखिल भारतीय सेवा में है, जबकि दो बेटे सेना में है। वहीं, एक बेटा निजी कंपनी में कार्यरत है। किरोड़ी बैंसल राजस्थान के ही नहीं देश के उन चेहरों में से हैं समाज के लिए काम करने वालों में शामिल हैं। उन्होंने गुर्जर आरक्षण आंदोलन को एक नई ऊंचाई दी। किरोड़ी बैंसल राजस्थान में लगातार आंदोलन किया। उन्होंने यह काम तब शुरू किया जब वह सेना से रिटायर हुए। वे गुर्जर समाज को अपने आंदोलन के बल पर अन्य पिछड़ा वर्ग में पांच फीसदी आरक्षण दिलाने में कामयाब रहे। मालूम हो कि, राजस्थान में पहले गुर्जर समाज ओबीसी वर्ग में आता था, लेकिन किरोड़ी बैसल के दबाव के कारण उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग में रखा गया।
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