मुंबई में चल रहे मराठा आंदोलन को लेकर महाराष्ट्र सरकार ने सोमवार(1 सितंबर) को कड़ा रुख अपनाया। बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्देशों के बाद सरकार ने साफ कर दिया है कि आंदोलन केवल आज़ाद मैदान तक सीमित रहना चाहिए। इसके बाहर प्रदर्शन कर सार्वजनिक जीवन बाधित करने की कोशिश करने वालों पर सख्त कार्रवाई की जाएगी।
सोमवार को बड़ी संख्या में आंदोलनकारी सीएसएमटी रेलवे स्टेशन और अन्य इलाकों में जमा हो गए, जिससे अफरा-तफरी और जनजीवन प्रभावित हुआ। राज्य के मंत्री राधाकृष्ण विखे पाटील ने स्पष्ट कहा, “शांतिपूर्ण आंदोलन आज़ाद मैदान में अनुमत है, लेकिन आंदोलन की आड़ में अराजकता फैलाने वालों पर सख्त कार्रवाई होगी। जनता को बंधक बनाने वालों को बख्शा नहीं जाएगा।”
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कोर्ट की टिप्पणियों का हवाला देते हुए कहा कि कुछ प्रदर्शनकारियों ने सड़क जाम कर शर्तों का उल्लंघन किया। उन्होंने कहा, “प्रशासन कोर्ट के आदेशों का सख्ती से पालन कराएगा। सरकार पूरी तरह संवैधानिक और कानूनी ढांचे के भीतर काम कर रही है। हम कानूनी विकल्प तलाश रहे हैं और जो भी कदम उठाएंगे, वह विधिक रूप से टिकाऊ होगा।”
इस बीच, मराठा आरक्षण के प्रमुख चेहरा मनोज जरांगे पाटिल का आज़ाद मैदान में अनिश्चितकालीन अनशन चौथे दिन में प्रवेश कर गया। उन्होंने पानी पीना भी बंद कर दिया है, जिससे आंदोलन और तीखा हो गया है। आंदोलन के पहले दिन आज़ाद मैदान के आसपास व्यापारियों ने दुकानें बंद कर दी थीं। इस पर प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि सरकार ने उन्हें कमजोर करने के लिए भोजन की दुकानें बंद करवाईं।
मुख्यमंत्री फडणवीस ने सफाई दी कि व्यापारी खुद भय के कारण दुकानें बंद कर बैठे थे। बाद में उन्हें पुलिस सुरक्षा का आश्वासन दिया गया और दुकानें दोबारा खोलने को कहा गया। इसी बीच, राज्य सरकार मराठा समाज को आरक्षण लाभ देने के लिए हैदराबाद गजट लागू करने पर गंभीरता से विचार कर रही है। सरकार की आरक्षण पर बनी उप-समिति के प्रमुख विखे पाटील ने बताया कि ड्राफ्ट तैयार हो चुका है और एडवोकेट जनरल से सलाह ली गई है। उन्होंने कहा, “ड्राफ्ट केवल कानूनी ढांचे में फिट होने पर ही अंतिम रूप दिया जाएगा। हाईकोर्ट का विस्तृत आदेश आने के बाद ही अगला कदम तय होगा।”
विखे पाटील ने आंदोलनकारियों से अपील की कि वे केवल आज़ाद मैदान तक सीमित रहें। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि अन्य जगहों पर लोग इकट्ठा होते हैं, तो उन्हें असली आंदोलनकारी न समझा जाए, बल्कि ऐसे तत्व आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं।
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