आगामी विधानसभा चुनाव के लिए सभी पार्टियां कमर कस रही हैं| लोकसभा में गलतियों से बचने के लिए महाविकास अघाड़ी और महायुति की ओर से कोशिशें की जा रही हैं| महायुति की ओर से तरह-तरह की घोषणाएं आ रही हैं और महाविकास अघाड़ी सरकार की आलोचना कर रही है और उसकी योजनाओं पर हमला बोल रही है| इस बीच, इन दोनों मोर्चों के बीच जगह का बंटवारा कैसे होगा? यह एक अहम सवाल है। इसी के आधार पर शरद पवार ने आज महाविकास अघाड़ी में सीटों के बंटवारे को लेकर अहम जानकारी दी|
“तीन दिन पहले हमारी चर्चा हुई थी। इसमें शिवसेना की ओर से संजय राऊत ने सीट आवंटन को लेकर बनने वाली कमेटी के लिए नाम दिए|एनसीपी की ओर से जयंत पटेल और कांग्रेस की ओर से बालासाहेब थोराट ने भी नाम दिये|संसद खत्म होने के बाद समिति का काम शुरू होगा|चाहे कुछ भी हो, तीनों पार्टियों के बीच इस बात पर आम सहमति है कि सीट को लेकर फैसला मिलकर लेना चाहिए, आम सहमति बनानी चाहिए, लोगों को विकल्प देना चाहिए |
वामपंथी पार्टियों को भी मौका: “यह भी सुझाव दिया गया है कि तीन पार्टियां महत्वपूर्ण हैं और वामपंथी पार्टियां भी। उन्होंने राज्य में एक भी सीट मांगे बिना लोकसभा चुनाव में हमारा समर्थन किया।चर्चा है कि हमें इस पर ध्यान देना चाहिए और वाम दलों को कुछ जगह देनी चाहिए|इस पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा।”
संवैधानिक बदलाव पर लोगों की बेचैनी ”लोकसभा में दो-तीन बातें अहम रहीं| एक तो ये कि भाजपा के कुछ लोगों ने कहा कि उन्हें 400 सीटें चाहिए| संविधान क्यों बदला जाना चाहिए? हेगड़े नाम के एक भाजपा मंत्री ने कहा था कि वह संविधान बदलना चाहते हैं| न सिर्फ उन्होंने बल्कि मोदी ने भी ऐसा ही रुख अपनाया| इससे लोग असहज थे| संविधान ने मौलिक अधिकार दिये हैं।
शरद पवार ने कहाकि लोगों ने सोचा कि इस पर अतिक्रमण की आशंका है, इसलिए एकजुट होकर वोट करना चाहिए| तो तस्वीर 400 से नीचे आ गई| अब विधानसभा चुनाव हैं| वो तीन एक राज्य के चुनाव हैं| ऐसा लगता है कि लोग बदलाव चाहते हैं।”
…तो बन सकती है लोकसभा जैसी स्थिति: उन्होंने कहा, ”आज के शासकों को संयमित रहना चाहिए। लेकिन लोगों को लगता है कि विधानसभा चुनाव में हमारे पास मौका है| हमने लोकसभा में एकजुट विकल्प दिया था| हमने विधानसभा के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी है| हम इसका प्रयास कर रहे हैं| इसे मूर्त रूप देना चाहिए| अगर ऐसा हुआ तो लोकसभा जैसी स्थिति दिख सकती है| यदि नहीं तो आज के शासकों को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी, लेकिन ऐसा लगता है कि लोकसभा की तरह स्पष्ट नतीजे नहीं आएंगे।”
यह भी पढ़ें-
पांच साल में 633 भारतीय छात्रों की विदेश में मौत; कनाडा में सबसे ज्यादा!