केंद्र सरकार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (MGNREGA) में एक बड़े बदलाव पर गंभीरता से विचार कर रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ग्रामीण परिवारों को मिलने वाले गारंटीड रोजगार के दिनों को मौजूदा 100 दिनों से बढ़ाकर 125 दिन करने का प्रस्ताव तैयार किया गया है। बताया जा रहा है कि इस संबंध में संशोधित विधेयक को शुक्रवार (12 दिसंबर) को हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में मंजूरी दी गई है।
गारंटीड कार्यदिवस बढ़ाने के साथ-साथ सरकार कानून का नाम बदलने के विकल्प पर भी विचार कर रही है। सूत्रों के अनुसार, इस अधिनियम को ‘पूजा बापू ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम’ नाम दिया जा सकता है। यदि ऐसा होता है तो इसके लिए मौजूदा कानून में औपचारिक संशोधन कर संसद की मंजूरी लेनी होगी।
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम पहली बार 2005 में पारित किया गया था। बाद में 2009 में यूपीए सरकार के कार्यकाल में इसका नाम बदलकर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम किया गया, जो 2 अक्टूबर 2009 से प्रभावी हुआ। उस समय सरकार ने तर्क दिया था कि महात्मा गांधी का नाम जोड़ने से कानून का समानता और समावेशन पर केंद्रित उद्देश्य और मजबूत होगा, खासकर वंचित वर्गों के लिए।
हालांकि कानून हर पात्र ग्रामीण परिवार को 100 दिनों तक रोजगार देने का वादा करता है, लेकिन वास्तविकता में स्थिति अलग है। 2024-25 में प्रति परिवार औसतन केवल 50 दिन का ही रोजगार उपलब्ध हो पाया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले वर्ष सिर्फ 40.70 लाख परिवार ही पूरे 100 दिन का काम पूरा कर सके। चालू वित्त वर्ष में स्थिति और कमजोर रही है। अब तक केवल 6.74 लाख परिवार ही 100 दिन की सीमा तक पहुंच पाए हैं, जिससे कानून में किए गए वादे और ज़मीनी क्रियान्वयन के बीच का अंतर साफ दिखता है।
MGNREGA का विस्तार ऐसे समय में प्रस्तावित किया गया है, जब सरकार 16वें वित्त आयोग की सिफारिशों के तहत योजना को आगे जारी रखने की प्रक्रिया शुरू कर चुकी है। ये सिफारिशें 1 अप्रैल 2026 से लागू होंगी, जिससे योजना के भविष्य को लेकर यह फैसला अहम माना जा रहा है।
आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जैसे कई राज्य लंबे समय से 100 दिन की सीमा बढ़ाने की मांग करते रहे हैं। हालांकि राज्यों को 100 दिनों से अधिक काम देने की अनुमति है, लेकिन इसका खर्च उन्हें खुद उठाना पड़ता है, जिस कारण बहुत कम राज्य इसे नियमित रूप से कर पाते हैं।
कानूनी रूप से अधिनियम की धारा 3(1) में “कम से कम 100 दिन” काम का उल्लेख है, लेकिन व्यवहार में 100 दिन ही अधिकतम सीमा बन गए हैं। कुछ अपवाद भी हैं, जैसे वन क्षेत्रों में रहने वाले भूमिहीन अनुसूचित जनजाति परिवारों को 150 दिन तक काम मिल सकता है। सूखा या अधिसूचित प्राकृतिक आपदा वाले क्षेत्रों में केंद्र सरकार अतिरिक्त 50 दिन की अनुमति दे सकती है।
2005 में शुरू होने के बाद से MGNREGA के तहत 4,872 करोड़ से अधिक मानव-दिवस का रोजगार सृजित किया जा चुका है। योजना पर कुल खर्च करीब ₹11.74 लाख करोड़ तक पहुंच चुका है। कोविड-19 महामारी के दौरान इसकी मांग चरम पर थी, जब 2020-21 में 7.55 करोड़ ग्रामीण परिवारों ने काम की मांग की थी। इसके बाद से भागीदारी में लगातार गिरावट दर्ज की गई है। यदि प्रस्तावित संशोधन लागू होता है, तो इसे ग्रामीण आजीविका सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा नीतिगत कदम माना जा रहा है, हालांकि इसका वास्तविक असर बजटीय आवंटन और ज़मीनी क्रियान्वयन पर निर्भर करेगा।
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