उत्तर प्रदेश भाजपा संगठन में एक बार फिर पूर्वांचल का प्रभाव स्पष्ट रूप से सामने आया है। महाराजगंज से सांसद और केंद्रीय मंत्री पंकज चौधरी का उत्तर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनना तय हो गया है। उन्होंने शनिवार को लखनऊ में औपचारिक रूप से नामांकन दाखिल किया, जिसमें मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ उनके प्रस्तावक रहे। इसके साथ ही राज्य भाजपा को नया अध्यक्ष मिलना लगभग तय हो गया है।
अब तक उत्तर प्रदेश भाजपा में 14 प्रदेश अध्यक्ष रहे हैं, जिनमें से 11 का संबंध पूर्वांचल क्षेत्र से रहा है। यह आंकड़ा पार्टी संगठन में पूर्वांचल की ऐतिहासिक पकड़ और निरंतर प्रभाव को रेखांकित करता है। पंकज चौधरी के चयन के साथ ही यह सिलसिला आगे बढ़ता दिख रहा है।
भाजपा ने पंकज चौधरी को अध्यक्ष बनाकर कुर्मी समाज पर बड़ा राजनीतिक दांव खेला है। 2024 के लोकसभा चुनावों में सामने आए PDA (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) समीकरण में समाजवादी पार्टी को मिली बढ़त के पीछे कुर्मी समाज की अहम भूमिका मानी गई। सपा के 7 कुर्मी सांसदों की जीत और राज्यभर में इस वर्ग का झुकाव सपा की ओर रहने से भाजपा के लिए संगठनात्मक चुनौती खड़ी हुई। ऐसे में पार्टी नेतृत्व पंकज चौधरी के जरिए प्रदेशभर में कुर्मी नेतृत्व को मजबूत करने और सामाजिक संतुलन साधने की रणनीति पर आगे बढ़ता दिख रहा है।
उत्तर प्रदेश में कुर्मी समाज मुख्य रूप से तीन भौगोलिक पट्टियों में फैला है, जो पूर्वांचल (मिर्जापुर बेल्ट), बुंदेलखंड-अवध बेल्ट, और बघेलखंड-बरेली बेल्ट है। इन क्षेत्रों में अलग-अलग नेतृत्व उभरता रहा है। भाजपा के पास लंबे समय से समेकित कुर्मी नेतृत्व की कमी मानी जाती रही है, जिसे पंकज चौधरी के माध्यम से भरने की कोशिश की जा रही है।
उत्तर प्रदेश भाजपा के पहले अध्यक्ष माधो प्रसाद त्रिपाठी (बस्ती) रहे। इसके बाद कलराज मिश्रा (पूर्वांचल) दो बार अध्यक्ष बने। वाराणसी में जन्मे राजनाथ सिंह ने 1997 से 2000 तक अध्यक्ष पद संभाला। ओम प्रकाश सिंह (मिर्जापुर), केशरीनाथ त्रिपाठी (प्रयागराज), रमापति राम त्रिपाठी (देवरिया), सूर्य प्रताप शाही (कुशीनगर), केशव प्रसाद मौर्य, महेंद्र नाथ पांडेय (चंदौली), और स्वतंत्र देव सिंह (मिर्जापुर) जैसे नाम इस सूची में शामिल रहे हैं। पूर्वांचल से इतर लक्ष्मीकांत वाजपेयी (मेरठ) और भूपेंद्र सिंह चौधरी अपवाद के रूप में सामने आते हैं।
चौधरी भूपेंद्र सिंह के बाद अब पंकज चौधरी के हाथों में संगठन की कमान होगी। 2026 के विधानसभा चुनावों से पहले यह नियुक्ति संगठनात्मक मजबूती, सामाजिक संतुलन और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व तीनों लिहाज से अहम मानी जा रही है। पूर्वांचल के दबदबे के बीच कुर्मी समाज पर केंद्रित यह फैसला, आने वाले राजनीतिक समीकरणों को किस दिशा में ले जाता है, इस पर सभी की नजरें टिकी रहेंगी।
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