कई शंकाओं और अटकलों के बीच जम्मू-कश्मीर के नेताओं की पीएम मोदी के साथ बैठक सम्पन्न हो गई। जो शक-शुबहा था, वह भी सामने आ गया। महबूबा मुफ़्ती ने अपने इरादे पहले भी जता चुकी थीं और दिल्ली में भी जता दिए की उनके इरादे क्या हैं। हालांकि, की कश्मीर के वरिष्ठ नेताओं में शुमार फारुख अब्दुल्ला ने देश के प्रति अपनापन दिखाकर करोड़ों भारवासियों का दिल जीत लिया, लेकिन महबूबा मुफ़्ती इसमें नाकाम रहीं, देश का कोई भी नागरिक उनकी बात पसंद नहीं किया। उम्मीद की जाती है कि समय रहते उनके विचार में बदलाव आएगा और भारत को अपना देश मानेंगी। जिस तरह से दिल्ली में इन नेताओं का जोरदार स्वागत हुआ वह यादगार रहेगा। बात अगर पीएम मोदी की करें तो दिल्ली ने कश्मीरियत और जम्हूरियत को साधने में कामयाब रही है।
महबूबा मुफ़्ती को छोड़कर बैठक में आये सभी नेताओं ने माना कि कश्मीर में फ़िलहाल शांति का माहौल है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि इस बैठक के सार्थक नतीजे निकल कर आये हैं। बैठक के दौरान किसी भी नेता ने धारा 370 की बहाली का मुद्दा नहीं उठाया।वहीं पीएम मोदी ने ट्वीट लिखा ”हमारे लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकत एक मेज पर बैठने और विचारों का आदान-प्रदान करने की क्षमता है। मैंने जम्मू-कश्मीर के नेताओं से कहा कि लोगों को, खासकर युवाओं को जम्मू-कश्मीर का राजनीतिक नेतृत्व देना है और यह सुनिश्चित करना है कि उनकी आकांक्षाएं पूरी हों।जबकि दूसरे ट्वीट में लिखा ;”·हमारी प्राथमिकता जम्मू-कश्मीर में जमीनी स्तर पर लोकतंत्र को मजबूत करना है। परिसीमन तेज गति से होना चाहिए ताकि चुनाव हो सके और जम्मू-कश्मीर को एक चुनी हुई सरकार मिले जो जम्मू-कश्मीर के विकास पथ को ताकत दे।”
कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा, जम्मू-कश्मीर में आज शांति है। सीमा भी शांत है। डीडीसी चुनाव भी हो चुके हैं। अब जल्द ही परिसीमन प्रक्रिया पूरी कर वहां चुनाव कराए जाएं। जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए।
आजाद ने इस दौरान पीएम से आग्रह किया किया कि 5 अगस्त 2019 के बाद जिन नेताओं को हिरासत में लिया गया था, उन्हें रिहा कर दिया जाए। खास बात यह की उन्होंने कहा कि ”हम आतंकवादियों को रिहा करने की बात नहीं कर रहे हैं। राजनीतिक व्यक्ति, जो बेगुनाह हैं और सरकार ने उन्हें राजनीति भय के चलते सलाखों के पीछे रखा हुआ है, उन्हें रिहा कर दिया जाए।वहीं ,उमर अब्दुल्ला ने कहा, पीएम और गृह मंत्री ने विश्वास दिलाया है कि जम्मू-कश्मीर में पूर्ण राज्य का दर्जा देने और चुनाव कराने की प्रक्रिया जल्द शुरू होगी। उनके मुताबिक, एक मुलाकात से न तो दिल की दूरी कम होगी और न ही दिल्ली की दूरी कम होगी। इसके लिए कई मुलाकात हो सकती हैं।
जबकि ,बैठक के बाद महबूबा का ‘पाकिस्तान प्रेम’ एक बार फिर छलक गया। महबूबा ने जोर देते हुए जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 की बहाली की मांग की। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर के लोग संवैधानिक, लोकतंत्र, शांतिपूर्ण तरीके से संघर्ष करेंगे। महीने हो या साल, हम जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को बहाल करेंगे, क्योंकि यह हमारी पहचान का मामला है। यह हमें पाकिस्तान से नहीं मिला, बल्कि हमारे देश ने हमें दिया, जेएल नेहरू और सरदार पटेल ने दिया। महबूबा ने जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल का नाम लेकर इमोशनल ब्लैकमेल करने की कोशिश की। उन्हें पता है कि अब कुछ नहीं होने वाला।अब केवल पाकिस्तान और धारा 370 का राग अलाप कर ही जनता में अपनी इमेज बचाई जा सकती है।जो केवल दिखावा भर है। वैसे भी कश्मीर की जनता जान चुकी है की यहां की सियासी पार्टियों ने उनके साथ सिर्फ धोखा किया है,उन्हें केवल छला है, हर तरह से, जनता को कभी भी देश से जुड़ने नहीं दिया, 370 के नाम पर लूट खसोट की गई और चरमपंथियों की आड़ लेकर जन्नत को रौंद दिया गया। बहरहाल, केंद्र सरकार कश्मीर में चुनाव करने के लिए कटिबद्ध है,लगभग केंद्र सरकार ने इसका खाका भी खींच चुकी है और सरकार चाहती है कि इस साल दिसंबर से लेकर अगले साल मार्च तक चुनाव हो जाये। फ़िलहाल परिसीमन आयोग कश्मीर में मौजूदा विधानसभा क्षेत्रों के पुनर्गठन और सात नयी सीटें बनाने पर विचार किया है। अगर परिसीमन का काम पूरा हो जाता है तो जम्मू एवं कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या 83 से बढ़कर 90 हो जाएगी।