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Wednesday, April 2, 2025
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दीक्षाभूमि में डॉ. आंबेडकर को दी श्रद्धांजलि, कहा- ‘यहां आने का सौभाग्य पाकर अभिभूत हूं’

दीक्षाभूमि न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व रखने वाला स्थल है। यह वह स्थान है, जहां बाबासाहेब आंबेडकर ने हिंदू धर्म की जाति-आधारित व्यवस्था को छोड़कर बौद्ध धम्म अपनाने का ऐतिहासिक निर्णय लिया था।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को महाराष्ट्र के नागपुर स्थित दीक्षाभूमि पहुंचकर डॉ. भीमराव आंबेडकर को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। दीक्षाभूमि वही ऐतिहासिक स्थल है, जहां 1956 में डॉ. अंबेडकर ने अपने हजारों अनुयायियों के साथ बौद्ध धर्म ग्रहण किया था।

प्रधानमंत्री मोदी के साथ इस दौरान महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस भी मौजूद रहे। दीक्षाभूमि के अध्यक्ष भदंत आर्य नागार्जुन शुरेई ससाई ने पीएम मोदी का स्वागत किया। प्रधानमंत्री ने दीक्षाभूमि पर महात्मा बुद्ध की पूजा-अर्चना भी की।

पीएम मोदी ने इस ऐतिहासिक स्थल की विजिटर्स बुक में अपने विचार साझा करते हुए लिखा, “बाबा साहेब के पंचतीर्थों में से एक नागपुर स्थित दीक्षाभूमि में आने का सौभाग्य पाकर अभिभूत हूं। इस पवित्र स्थल के वातावरण में बाबा साहेब के सामाजिक समरसता, समानता और न्याय के सिद्धांतों का सहज अनुभव होता है। दीक्षाभूमि हमें गरीबों, वंचितों और जरूरतमंदों के लिए समान अधिकार और न्याय की व्यवस्था के साथ आगे बढ़ने की ऊर्जा प्रदान करता है।”

उन्होंने आगे लिखा, “मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस अमृत कालखंड में हम बाबा साहेब अंबेडकर की शिक्षाओं और मूल्यों पर चलते हुए देश को प्रगति के नए शिखर पर लेकर जाएंगे। एक विकसित और समावेशी भारत का निर्माण ही बाबा साहेब को हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।”

प्रधानमंत्री मोदी इससे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के संस्थापकों को श्रद्धांजलि देने के लिए डॉ. हेडगेवार स्मृति मंदिर पहुंचे थे, जिसके बाद उन्होंने दीक्षाभूमि का दौरा किया। दीक्षाभूमि न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व रखने वाला स्थल है। यह वह स्थान है, जहां बाबासाहेब आंबेडकर ने हिंदू धर्म की जाति-आधारित व्यवस्था को छोड़कर बौद्ध धम्म अपनाने का ऐतिहासिक निर्णय लिया था।

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बौद्ध वास्तुकला की तर्ज पर बना यह भव्य स्तूप मध्य प्रदेश के सांची स्थित सम्राट अशोक द्वारा निर्मित प्रसिद्ध स्तूप की प्रतिकृति है। यह एशिया के सबसे बड़े स्तूपों में से एक माना जाता है। 18 दिसंबर 2001 को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति के.आर. नारायणन ने इस ऐतिहासिक स्थल का उद्घाटन किया था। दीक्षाभूमि वर्षों से सामाजिक समरसता, न्याय और समानता के विचारों को सशक्त बनाने का केंद्र बना हुआ है और हर साल लाखों श्रद्धालु यहां आकर बाबा साहेब को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।

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