केंद्र सरकार ने नए स्मार्टफोन्स में ‘संचार साथी’ ऐप को अनिवार्य रूप से प्री-इंस्टॉल करने का अपना आदेश वापस ले लिया है। सरकार द्वारा स्मार्टफोन कंपनियों को दिए आदेश के बाद दो दिनों तक विपक्षी दलों, तकनीकी विशेषज्ञों और नागरिक अधिकार समूहों ने निजता को लेकर कड़ी आपत्तियां दर्ज कराई थीं। सरकार ने कहा कि पिछले 24 घंटों में ऐप के छह लाख से अधिक डाउनलोड होने के बाद अब प्री-इंस्टॉलेशन की आवश्यकता नहीं रह गई है।
सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया कि यह आदेश Apple सहित सभी मोबाइल फोन निर्माताओं, से वापस लिया जा रहा है। बयान में बताया गया कि प्री-इंस्टॉलेशन का निर्देश इसलिए दिया गया था ताकि नागरिक तेजी से साइबर सुरक्षा सुविधाओं तक पहुंच सकें। लेकिन ऐप की लोकप्रियता स्वतः बढ़ने के कारण अब इसे फोन में पहले से डालना अनिवार्य नहीं होगा।
नेताओं और कार्यकर्ताओं ने आशंका जताई थी कि प्री-इंस्टॉलेशन से नागरिकों की निजता प्रभावित हो सकती है और यह 2021 के पेगासस विवाद जैसी आशंकाएं पैदा करता है। कई समूहों का कहना था कि बिना सहमति ऐप डालना निगरानी के खतरे को बढ़ा देगा।
हालांकि संचार मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मंगलवार (2 दिसंबर) को और फिर बुधवार (3 दिसंबर) सुबह संसद में स्पष्ट किया कि सरकार इस ऐप को हटाने पर भी विचार कर सकती है। उन्होंने लोकसभा में कहा, “संचार साथी ऐप के साथ जासूसी न तो संभव है और न ही होगी। यह किसी भी अन्य ऐप की तरह हटाया जा सकता है। लोकतंत्र में हर नागरिक को यह अधिकार है।”
सरकार की ओर से जारी बयान में दोहराया गया कि यह ऐप केवल साइबर सुरक्षा और उपभोक्ता जागरूकता के लिए बनाया गया है और नागरिकों की सुरक्षा के अलावा इसका कोई अन्य उद्देश्य नहीं है। उपयोगकर्ता इसे अपनी इच्छा से डाउनलोड कर सकते हैं और किसी भी समय अनइंस्टॉल भी कर सकते हैं।
बता दें की, ‘संचार साथी’ दूरसंचार विभाग (DoT) द्वारा विकसित प्लेटफ़ॉर्म है, जो एक ऐप और वेब पोर्टल दोनों रूपों में उपलब्ध है। इसका उद्देश्य फोन की सुरक्षा से जुड़े खतरों, फर्जी कॉल, चोरी के मोबाइल और साइबर फ्रॉड से नागरिकों को बचाना और जागरूक बनाना है। सरकार के इस फैसले से प्री-इंस्टॉलेशन को लेकर उठी चिंताओं पर फिलहाल विराम लग गया है, हालांकि डिजिटल निजता और निगरानी को लेकर बहस आगे भी जारी रहने की संभावना है।
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