सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में झारखंड सरकार को आदेश दिया है कि वह एशिया के सबसे बड़ा साल जंगल ‘सरंडा वन’ को वन्यजीव अभयारण्य घोषित करे। इस क्षेत्र की जैव-विविधता, पारिस्थितिक महत्व और आदिवासी विरासत पर खनन तथा अन्य विकासात्मक गतिविधियों का दबाव लगातार बढ़ रहा है। अदालत ने कहा कि सरंडा जैसे संवेदनशील और जैविक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र की सुरक्षा अब “अत्यावश्यक” हो चुकी है।
सरंडा वन, पश्चिम सिंहभूम जिले में करीब 820 से 900 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है और इसे सात सौ पहाड़ियों की भूमि के नाम से भी जाना जाता है। छोटानागपुर बायो-जियोग्राफिक ज़ोन में स्थित यह विशाल जंगल ओडिशा और छत्तीसगढ़ के सीमा क्षेत्रों से मिलकर एक सतत वन क्षेत्र बनाता है। साल के घने पेड़ों के बीच यह वन कई दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियों का महत्वपूर्ण निवास है, जिनमें साल फॉरेस्ट टॉरटोइज़, चार-सींग वाला मृग, एशियन पाम सिवेट और जंगली हाथी प्रमुख हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सरंडा को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत मजबूत कानूनी सुरक्षा मिलेगी, जिससे अवैध शिकार, वनों की कटाई और अनियंत्रित औद्योगिक गतिविधियों पर कड़ी रोक लग सकेगी। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम वन्यजीव कॉरिडोरों के बेहतर प्रबंधन में भी मददगार होगा, खासकर हाथियों जैसे माइग्रेटरी प्रजातियों के लिए, जिनकी आवाजाही इस क्षेत्र में लंबे समय से बाधित होती रही है।
सरंडा का महत्व केवल पर्यावरणीय नहीं, बल्कि सामाजिक एवं सांस्कृतिक भी है। यह क्षेत्र हो, मुंडा और उरांव जैसी आदिवासी समुदायों का पारंपरिक घर है, जो पीढ़ियों से इस जंगल पर खाद्य पदार्थों, औषधियों, ईंधन और धार्मिक आस्था के लिए निर्भर हैं। अदालत के इस फैसले से सामुदायिक संरक्षण मॉडल को भी मजबूती मिल सकती है, जहां स्थानीय आदिवासी समूहों की सहभागिता से संरक्षण प्रयास अधिक प्रभावी बन सकते हैं।
हालांकि, सरंडा भारत के लगभग 26% लौह अयस्क भंडार का केंद्र भी है। दशकों से यहां बड़े पैमाने पर खनन होता आया है, जिसने जंगल के पारिस्थितिक संतुलन को गंभीर रूप से प्रभावित किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश खनन और पर्यावरण संरक्षण के बीच लंबे समय से चल रही बहस में एक निर्णायक मोड़ ला सकता है। भविष्य में खनन परियोजनाओं के लिए मंज़ूरी मानकों को कड़ा किया जा सकता है, ताकि सरंडा की अनोखी जैव-विविधता और आदिवासी विरासत सुरक्षित रह सके। अदालत का यह निर्देश न केवल भारत के संरक्षण एजेंडा को नई दिशा देता है, बल्कि सरंडा जैसे महत्वपूर्ण पारिस्थितिक क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए एक स्थायी ढांचा तैयार करने की दिशा में भी महत्वपूर्ण कदम है।
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