प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगले हफ्ते चीन के तियानजिन शहर की यात्रा करेंगे, जहां वे शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में शामिल होंगे। यह उनकी सात साल बाद चीन की पहली आधिकारिक यात्रा होगी। इस बैठक का मकसद वैश्विक दक्षिण (Global South) की एकजुटता को मजबूत करना, प्रतिबंधों से जूझ रहे रूस को कूटनीतिक मंच देना और बीजिंग की बढ़ती ताकत को दुनिया के सामने रखना है।
भारत के विदेश मंत्रालय में सचिव (पश्चिम) तनमय लाल ने मंगलवार (26 अगस्त)को जानकारी दी कि प्रधानमंत्री मोदी, राष्ट्रपति शी जिनपिंग के निमंत्रण पर 31 अगस्त और 1 सितंबर को तियानजिन में होने वाली इस बैठक में हिस्सा लेंगे। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी शिखर सम्मेलन के दौरान कुछ द्विपक्षीय बैठकें भी कर सकते हैं।
शिखर सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और मध्य एशिया, दक्षिण एशिया, पश्चिम एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के कई देशों के नेता भी मौजूद रहेंगे। यह अब तक का सबसे बड़ा SCO सम्मेलन माना जा रहा है।
रूसी अधिकारियों ने हाल ही में उम्मीद जताई थी कि इस मौके पर भारत, चीन और रूस के बीच त्रिपक्षीय बातचीत भी हो सकती है। पीएम मोदी इससे पहले रूस में हुए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में शी और पुतिन के साथ एक मंच पर नजर आए थे।
भारत के लिए महत्व:
भारत के लिए यह यात्रा खास मानी जा रही है क्योंकि 2020 के सीमा संघर्ष के बाद बीजिंग के साथ रिश्तों में आई तल्खी धीरे-धीरे कम हो रही है। विश्लेषकों का मानना है कि इस बैठक से सीमा पर विश्वास बहाली, व्यापार अवरोधों को हटाने और नए सहयोग के क्षेत्रों पर बातचीत आगे बढ़ सकती है। “संभावना है कि भारत हाल के SCO विवादों को पीछे छोड़कर चीन के साथ संबंध सुधार पर ध्यान देगा, जो पीएम मोदी की अहम प्राथमिकता है,” रॉयटर्स ने एरिक ओलैंडर के हवाले से कहा।
ओलैंडर ने आगे कहा, “शी इस सम्मेलन का इस्तेमाल यह दिखाने के लिए करेंगे कि अमेरिकी नेतृत्व वाले अंतरराष्ट्रीय ढांचे के बाद की दुनिया कैसी दिखेगी और यह कि अमेरिका की कोशिशें चीन, ईरान, रूस और अब भारत को रोकने में नाकाम रही हैं।”
शी जिनपिंग का बड़ा संदेश:
इसी बीच, चीन ने रूस के साथ अपनी साझेदारी पर भी जोर दिया है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मंगलवार को कहा कि रूस के साथ चीन के संबंध “सबसे स्थिर, परिपक्व और रणनीतिक रूप से अहम” हैं। उन्होंने मास्को और बीजिंग के रिश्तों को “विश्व शांति का स्थिर स्रोत” बताया। शी ने कहा, “दोनों देश मिलकर अपने-अपने सुरक्षा और विकास हितों की रक्षा करेंगे, ग्लोबल साउथ को एकजुट करेंगे, सच्चे बहुपक्षवाद का समर्थन करेंगे और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को अधिक न्यायसंगत दिशा में ले जाएंगे।”
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद बीजिंग और मास्को की नज़दीकियां और भी बढ़ी हैं। चीन ने न तो इस युद्ध की आलोचना की है और न ही रूस से सैनिक पीछे हटाने की मांग की है। यही वजह है कि पश्चिमी देशों का मानना है कि बीजिंग ने मास्को को परोक्ष समर्थन दिया है।
SCO का प्राथमिक लक्ष्य आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद से मुकाबला करना है। इसके 10 सदस्य देश हैं—भारत, चीन, रूस, ईरान, कज़ाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान, पाकिस्तान और बेलारूस। भारत 2005 से SCO में पर्यवेक्षक रहा और 2017 में पूर्ण सदस्य बना।
प्रधानमंत्री मोदी शिखर सम्मेलन के बाद सीधे भारत लौटेंगे, जबकि राष्ट्रपति पुतिन बीजिंग में द्वितीय विश्व युद्ध परेड में शामिल होने के लिए कुछ और दिन रुकेंगे।
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