उत्तर प्रदेश में होनेवाले निकाय चुनाव की तारीखों के एलान पर फिलहाल हाईकोर्ट ने 20 दिसंबर तक रोक लगा दी है जिसके बाद अब बीजेपी और समाजवादी पार्टी में बयानबाजी शुरू हो गई हैं। एक तरफ जहां बीजेपी कह रही है कि कोर्ट केस के पीछे सपा के लोग हैं तो वहीं दूसरी और सपा कह रही है कि बीजेपी सरकार के मंत्रियों ने अपनी मनमर्जी के हिसाब से निकाय चुनाव में आरक्षण करा लिया। जिसके बाद इस मुद्दे को लेकर सियासी दलों के बीच बयानबाजी शुरू हो गया हैं। वहीं स्थानीय निकाय चुनाव लंबा खींचता जा रहा है।
उत्तर प्रदेश में लोगों को निकाय चुनाव की तारीखों की घोषणा का इंतजार था। लेकिन हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अधिसूचना जारी कर इसपर रोक लगा दी। वहीं कोर्ट में ट्रिपल टेस्ट फॉर्मूला आरक्षण में लागू न होने को लेकर यह रोक लगाई है। भले ही रोक हाईकोर्ट ने लगाई हो लेकिन इसे लेकर प्रदेश में सियासत चरम पर है। वहीं ये आदेश तब आया है जब प्रशासनिक विभाग चुनाव की तैयारियों को पूरा कर चुका था और तारीखों के एलान का इंतजार हो रहा था।
यूपी उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य तो साफ तौर पर इसे सपा की साजिश बता रहे है तो वहीं जिस विभाग पर इस स्थानीय निकाय चुनाव को कराने की जिम्मेदारी है। उस नगर विकास विभाग के मुखिया अरविंद कुमार शर्मा भी सपा को ही इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। सरकार के ज़्यादार मंत्री अब इसके लिए सपा को जिम्म्मेदार बता रहे हैं। जबकि अखिलेश यादव ने कहा है कि सरकार के कुछ मंत्रियों ने अधिकारियों के साथ अपने मन मुताबिक आरक्षण करा लिया है। जिस वजह से इसमें इतनी खामियां हैं। इसलिए कोर्ट ने इस पर रोक लगाई है।
वहीं किन्नर बोर्ड की उपाध्यक्ष सोनम किन्नर ने कुछ समय पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चीफ जस्टिस और मुख्य निर्वाचन अधिकारी को पत्र लिखकर किन्नर समाज के लिए भी सीट आरक्षित करने की मांग की है। जाहिर है सियासी बयानबाजी एक तरफ लेकिन जिस तरह से आरक्षण का मसला उलझा है, ऐसे में कोर्ट अगली सुनवाई पर क्या आदेश देता है वह काफी महत्वपूर्ण होगा।
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