आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएस जगनमोहन रेड्डी ने मंगलवार को घोषणा की कि राज्य की नई राजधानी विशाखापत्तनम होगी। इसके साथ ही मुख्यमंत्री ने नई राजधानी में ग्लोबल इन्वेस्टर समिट आयोजित करने का ऐलान भी किया। बता दें कि तेलंगाना के अलग होने के बाद आंध्र प्रदेश दोनों राज्यों की राजधानी दस साल के लिए हैदराबाद बनाई गई थी। बाद में अमरावती को आंध्र प्रदेश की राजधानी बनाई गई थी।
तेलंगाना राज्य 2 जून 2014 को बनाया गया। वहीं इस राज्य के पहले मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव बने थे। मुख्यमंत्री रेड्डी ने अपने ट्विटर हैंडल पर एक वीडियो शेयर कर इसकी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि मै आप सभी आंध्र प्रदेश की की नई राजधानी विशाखापत्तनम आमंत्रित करता हूं। जो आने वाले समय में राज्य की राजधानी बनेगी। मै भी कुछ समय में नई राजधानी में शिफ्ट हो जाऊंगा। हम 3 और 4 मार्च को नई राजधानी एक शिखर सम्मेलन आयोजित करने जा रहे हैं।
अमरावती राजधानी घोषित: मालूम हो कि आंध्र प्रदेश से तेलंगाना के अलग होने के नौ साल बाद राज्य सरकार ने नई राजधानी बनाने का ऐलान किया है। 23 अप्रैल 2015 में अमरावती को आंध्र प्रदेश की राजधानी घोषित किया गया था। बाद में कहा गया कि आंध्र प्रदेश तीन राजधानी बनाने की योजना पर काम कर रही है। जो अमरावती, विशाखापत्तनम और कुर्नूल के रूप में सामने आया है। हालांकि बाद में इस योजना को वापस ले लिया गया था और कहा गया था कि अमरावती ही राजधानी रहेगी। इसके बाद जगनमोहन रेड्डी की पार्टी ने आरोप लगाया था कि राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने जमीन घोटाला किया है। इस मामले में रेड्डी की पार्टी ने सीबीआई जांच की मांग की थी। लेकिन जमीन घोटाले के आरोप से नायडू लगातार इंकार करते रहे हैं। बता दें कि तेलंगाना राज्य की लंबे समय से मांग की जा रही थी। तेलंगाना राज्य में दस जिले हैं।
अंतिम निर्णय केंद्र सरकार का: हालांकि सीएम रेड्डी के ऐलान के बाद यह भी सवाल पूछा जा रहा है कि क्या एक राज्य अपनी नई राजधानी बनाने का निर्णय ले सकता है। इसमें केंद्र का क्या रोल होता है। तो बताया जा रहा है कि केवल संसद को राज्यों की सीमाओं और राजधानी शहर को सूचित करने का अधिकार होता है। विधानसभा केवल राजधानी शहर के बारे में अपील कर सकती है। जिस पर अंतिम निर्णय केंद्र सरकार द्वारा ही लिया जाता है। बताया जाता है कि संसद ने अमरावती को आंध्र प्रदेश की राजधानी के लिए कोई घोषणा नहीं की थी। न ही राज्य ने ऐसी को राजपत्र जारी किया था जिससे भ्रम की स्थिति बनी हुई थी। विधानसभा केवल एक प्रस्ताव पारित किया था। बावजूद इसके तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने इस पर केंद्र द्वारा मुहर नहीं लगा सके थे।
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