केरल सरकार की बड़े कंपनियों और प्रोजेक्ट्स को राज्य से बहार धकेलने वाली पॉलिसी के बाद केरल राज्य का खजाना खाली पड़ा है। केरल ने अपनी आर्थिक दिक़्क़तों के चलते केंद्र सरकार के पास मदत की गुहार लगाई थी। केरल की कंगाली पर मार्ग निकालते हुए भारत सरकार ने केरल को 13,200 करोड़ रुपए का राहत पैकेज देने की बात की थी।
केंद्र का राहत पैकेज केरल की कम्युनिस्ट सरकार को कम लगने लगी, जिसके बाद वो सीधा सर्वोच्च न्यायलय का दरवाजा खटखटाने लगे। आपको बता दें की. सर्वोच्च न्यायलय ने केंद्र के राहत पॅकेज को सही करार देते हुए पिनरयी विजयन के नेतृत्व में चल रही कम्युनिस्ट सरकार को केरल की कंगाली के लिए जिम्मेदार ठहराया है।
एक तरफ केरल की कम्युनिस्ट पार्टी देश में संपत्ति निर्माण करने वाले उद्योगपतियों के पीछे हाथ धोकर पड़ी है केंद्र सरकार पर आलोचना कर रही है, दूसरी तरफ यह पार्टी अपने ही राज्य में अडाणी पोर्ट्स के साथ मिलकर विझिंजम पोर्ट् बना रहीं है। एक तरफ बड़े उद्योगों, और उद्योगपतियों को केरल में स्थानिक नेता और गुंडे अड़चनें पैदा कर रहें है, जिनपर पोलिस और प्रशासन का कोई असर नहीं है। तो दूसरी तरफ केरल राज्य के नेताओं बड़े से बड़े भ्रष्टाचार के मामलों में आरहें है।
केरल देश का सबसे शिक्षित राज्य होते हुए भी, राज्य के कुशल युवाओं को बेंगलुरु, पुणे, मुंबई, चेन्नई, दिल्ली जैसे शहरों में नौकरी करने जाना पड़ता है। बड़े उद्योगों और इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी के चलते सेवा और सुशासन की कमी भी है। जहां सेवा और सुशासन की कमी होती है जाहिर है वहां गुनहगारी भी पनपती है। ऐसे में केरल राज्य में कंगाली का माहौल निर्माण होना राज्य सरकार और प्रशासन की कार्यपद्धति पर कई सवाल उठता है।
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