सावन में भगवान शिव की पूजा बड़े ही विधि विधान से की जाती है। शास्त्रों के अनुसार चातुर्मास में भगवन शिव सृष्टि का संचालन करते हैं। इस दौरान उनके ही ऊपर पूरा दायित्व होता है। सावन माह में की गई पूजा से शिव बड़े प्रसन्न होते हैं। कई मंदिरों में शिव लिंग पर भस्म आरती की जाती है। भगवान शिव की भस्म आरती करने के लिए भस्म को प्रतिदिन श्मशान की जली हुई चिताओं से लाया जाता है। वहीं श्मशान की इस भस्म को साधु-संत तथा अघोरी लोग भी अपने शरीर पर लगाते हैं। सवाल यह है कि आखिर भगवान शिव को भस्म इतनी प्रिय क्यों है।आइये जानते हैं।
शास्त्रों के मुताबिक, भगवान देवादिदेव महादेव को मृत्यु का स्वामी माना गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार शव से ही भगवान आशुतोष का शिव नाम बना है। ऐसी मान्यता है कि, भगवान शिव का शरीर नश्वर है और इसे एक दिन इस भस्म की तरह राख हो जाना है। जीवन के इसी पड़ाव का भगवान शिव सम्मान करते हैं। शव के इस सम्मान के लिए वो अपने शरीर पर भस्म रमाते हैं। इसलिए ही भगवान शिव की भस्म आरती की जाती है। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान शिव के ससुर राजा दक्ष ने एक बार एक यज्ञ किया था और उन्होंने भगवान शिव और माता सती को यज्ञ के लिए निमंत्रण पत्र नहीं दिया था।
वहीं अपने पिता राजा दक्ष के द्वारा भगवान शिव के इस अपमान को माता सती बर्दाश्त ना कर सकीं और उन्होंने क्रोध में आकर खुद यज्ञकुंड की अग्नि को समर्पित कर दिया था। माता सती के शव को लेकर भगवान शिव सृष्टि में तांडव करने लगे। वे माता सती के शव को लेकर सृष्टि में विलाप करते हुए भ्रमण कर रहे थे। तभी भगवान श्रीहरि विष्णु से भगवान शिव की ऐसी दशा देखी नहीं गई और उन्होंने माता सती के शव को भस्म के रुप में बदल दिया था। अपने हाथों में सती के शव के स्थान पर भस्म देखकर शिव जी और परेशान हो गए। माता सती को याद करते हुए उन्होंने उस राख को ही अपने शरीर पर लगा लिया। इसलिए भगवान शिव को भस्म पसंद है क्योंकि वे माता सती से अलग नहीं होना चाहते हैं।