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Tuesday, December 9, 2025
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चंदगुड़े का सराहनीय कदम, मां की मृत्यु के बाद शरीर का किया दान!

विधवापन की प्रथा को खत्म करने के लिए सरकार द्वारा सर्कुलर जारी किए जाने के बाद सुगंधाबाई ने महाराष्ट्र में पहली बार इसे लागू किया। विधवा होते हुए भी उन्होंने टिकली मंगलसूत्र, जोड़वे पहना।

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पुरानी परंपरा और रीति-रिवाजों को तोड़ते हुए बिना किसी अंतिम संस्कार के अपनी मां के शरीर को दान करने का फैसला किया। महिला का शव नासिक के वसंतराव पवार मेडिकल कॉलेज को सौंप दिया गया है। उन्होंने अपना शरीर दान कर समाज के सामने एक अनूठी मिसाल कायम की है।

नासिक में महाराष्ट्र अंधविश्वास उन्मूलन समिति की राज्य कार्यकारिणी कृष्णा चंदगुड़े ने यह अनूठी पहल की है। उनकी मां सुगंधाबाई त्र्यंबक चंदगुडे का 83 वर्ष की आयु में निधन हो गया। गुरुवार को बीमारी के चलते उन्होंने अंतिम सांस ली। चंदगुडे ने अपनी मां की मृत्यु के बाद उनका शरीर दान कर दिया। उनका शरीर डॉ. इसे वसंतराव पवार मेडिकल कॉलेज को सौंप दिया गया है।
कृष्णा चंदगुडे ने सूचित किया है कि वह सुगंधाबाई चंदगुडे का किसी भी प्रकार का श्राद्ध, दशक्रिया अनुष्ठान नहीं करेंगे। इसी तरह, चंदगुडे परिवार ने बिना कोई पैसा खर्च किए, मृत्यु के बाद की पूजा की रस्में स्कूल को दान करने का फैसला किया है।

सुगंधाबाई की श्रद्धांजलि सभा दि. 12 फरवरी को अपने पैतृक गांव चासनाली में यह कोपरगांव में आयोजित किया जाएगा। इस अवसर पर अंगदान आंदोलन के कार्यकर्ता सुनील देशपांडे (उपाध्यक्ष, अंग एवं शरीर दान संघ, मुंबई) ‘देहदान और अंगदान, समय की आवश्यकता’ विषय पर व्याख्यान देंगे। कृष्णा चंदगुडे ने कहा है कि वह उन लोगों के फॉर्म भरेंगे जो मरने के बाद शरीर दान करना चाहते हैं।

चंदगुडे परिवार ने कई ऐसे फैसले लिए हैं जो समाज के लिए मिसाल कायम करते हैं। विधवापन की प्रथा को खत्म करने के लिए सरकार द्वारा सर्कुलर जारी किए जाने के बाद सुगंधाबाई ने महाराष्ट्र में पहली बार इसे लागू किया। विधवा होते हुए भी उन्होंने टिकली मंगलसूत्र, जोड़वे पहना।

अब कृष्णा चंदगुडे ने पुरानी परंपराओं और रीति-रिवाजों को तोड़ते हुए अपनी मां के शरीर का दान किया है। इसलिए चंदगुडे परिवार ने एक बार फिर समाज में देहदान के प्रति जन जागरूकता पैदा की है और समाज के लिए एक मिसाल कायम की है।
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