जब अंग्रेज को प्रसन्न करने के लिए हुई थी पहली बार दुर्गा पूजा

265 साल पहले बंगाल में ऐसे हुई थी दुर्गा पूजा मनाने की शुरुआत!

जब अंग्रेज को प्रसन्न करने के लिए हुई थी पहली बार दुर्गा पूजा

इस बार नवरात्रि का पर्व 26 सितंबर, सोमवार से 4 अक्टूबर, मंगलवार तक मनाया जाएगा। देश के अलग-अलग हिस्सों में ये त्योहार अपनी अनोखी परंपराओं के साथ मनाया जाता है। हर साल नवरात्र के मौके पर भव्य दुर्गा पूजा की परंपरा रही है। नौ दिनों के दौरान मां की उपासना होती है। भारत में नवरात्रि का त्योहार बड़े ही उत्सव और धूमधाम से मनाया जाता है। देश में ऐसे कई हिस्से हैं, जहां नवरात्रि को मनाने का तरीका एक दूसरे से काफी अलग होता है। देश के कोने-कोने में पूरी भव्यता से मां दुर्गा और उनके नौ रूपों की अराधना होती है। भक्ति में सराबोर करने वाले इस त्योहार का लोगों को बेसब्री से इंतजार होता है। तो कहीं -कहीं गरबा और डांडिया का आयोजन भी किया जताया है। पश्चिम बंगाल में सबसे भव्य तरीके से दुर्गा पूजा होती है। बंगाल के विभिन्न शहरों में होने वाली दुर्गा पूजा की रौनक देखती ही बनती है। बड़े-बड़े पंडाल और आकर्षक मूर्तियों के साथ शानदार तरीके से बंगाली समाज देवी दुर्गा की पूजा करता है।

बंगाल में सैकड़ों साल से दुर्गा पूजा हो रही है। कहा जाता है कि बंगाल से ही देश के दूसरे हिस्सों में दुर्गा पूजा आयोजित करने का दौर शुरू हुआ। आज भी पश्चिम बंगाल जैसी दुर्गा पूजा कहीं नहीं होती। पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा आयोजित करने की शुरुआत को लेकर कई कहानियां हैं। पहली बार दुर्गा पूजा कैसे हुई, क्यों आयोजित की गई, इसको लेकर एक बहुत दिलचस्प किस्सा है।

पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा का आयोजन 1757 के प्लासी के युद्ध के बाद शुरू हुआ। बता दें कि बंगाल में मुर्शिदाबाद के दक्षिण में 22 मील दूर गंगा किनारे प्लासी नाम की जगह है। यहीं पर 23 जून 1757 को बंगाल के नवाब की सेना और अंग्रेजों के बीच युद्ध हुआ। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने रॉबर्ट क्लाइव के नेतृत्व में युद्ध लड़ा और नवाब सिराजुद्दौला को पराजित किया। हालांकि युद्ध से पहले ही साजिश के जरिए रॉबर्ट क्लाइव ने नवाब के कुछ प्रमुख दरबारियों और शहर के अमीर सेठों को अपने साथ कर लिया था। कहा जाता है कि प्लासी के युद्ध में अंग्रेजों की जीत पर भगवान को धन्यवाद देने के लिए पहली बार दुर्गा पूजा का आयोजन हुआ था।

कहा जाता है कि युद्ध में जीत के बाद रॉबर्ट क्लाइव ईश्वर को धन्यवाद देना चाहता थे। लेकिन युद्ध के दौरान नवाब सिराजुद्दौला ने इलाके के सारे चर्च को नष्ट कर दिया था। उस वक्त अंग्रेजों के हिमायती राजा नव कृष्णदेव सामने आए। उन्होंने रॉबर्ट क्लाइव के सामने भव्य दुर्गा पूजा आयोजित करने का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव पर रॉबर्ट क्लाइव भी तैयार हो गया। उसी वर्ष पहली बार कोलकाता में भव्य दुर्गा पूजा का आयोजन हुआ। पूरे कोलकाता को शानदार तरीके से सजाया गया। कोलकाता के शोभा बाजार के पुरातन बाड़ी में दुर्गा पूजा का आयोजन हुआ। इसमें कृष्णनगर के महान चित्रकारों और मूर्तिकारों को बुलाया गया। भव्य मूर्तियों का निर्माण हुआ। रॉबर्ट क्लाइव ने हाथी पर बैठकर समारोह का आनंद लिया। इस आयोजन को देखने के लिए दूर-दूर से चलकर लोग कोलकाता आए थे। इस आयोजन के प्रमाण के तौर पर अंग्रेजों की एक पेटिंग मिलती है। जिसमें कोलकाता में हुई पहली दुर्गा पूजा को दर्शाया गया है। राजा नव कृष्णदेव के महल में भी एक पेंटिंग लगी थी। इसमें कोलकाता के दुर्गा पूजा आयोजन को चित्रित किया गया था। इसी पेंटिंग की बुनियाद पर पहली दुर्गा पूजा की कहानी कही जाती है।

1757 के दुर्गा पूजा आयोजन को देखकर बड़े अमीर जमींदार भी अचंभित हो गए। बाद के वर्षों में जब बंगाल में जमींदारी प्रथा लागू हुई तो इलाके के अमीर जमींदार अपना दबदबा दिखाने के लिए हर साल भव्य दुर्गा पूजा का आयोजन करने लगे। इस तरह की पूजा को देखने के लिए दूर-दूर के गांवों से लोग आते थे। बताया जाता है कि 1757 के बाद 1790 में राजाओं, सामंतों और जमींदारों ने पहली बार बंगाल के नदिया जनपद के गुप्ती पाढ़ा में सार्वजनिक दुर्गा पूजा का आयोजन किया था। इसके बाद दुर्गा पूजा सामान्य जनजीवन में भी लोकप्रिय होती गई और इसे भव्य तरीके से मनाने की परंपरा पड़ गई। धीरे-धीरे दुर्गा पूजा लोकप्रिय होकर सभी जगहों पर होने लगी।

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