कर्मों का लेखा-जोखा रखने वाले भगवान चित्रगुप्त की ऐसे करें पूजा  

कर्मों का लेखा-जोखा रखने वाले भगवान चित्रगुप्त की ऐसे करें पूजा   

सभी प्राणियों के कर्म का लेखा जोखा रखने वाले भगवान चित्रगुप्त का कार्तिक मास के शुक्लपक्ष के दूसरे दिन यानी विधि विधान से पूजा-पाठ किया जाता है। बताया जाता है कि इस दिन कारोबारी नए बही-खातों का लेखा जोखा भगवान चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत करते हैं। मान्यता है कि प्राणी की जब जीवनलीला समाप्त होने पर यमलोक जाने पर भगवान चित्रगुप्त उसके कर्मों का लेखा-जोखा उसके सामने रखते हैं और उसी के अनुसार उसे आगे स्वर्ग या नर्क लोक की अगली यात्रा तय होती है। मान्यता है कि भगवान चित्रगुप्त किसी भी प्राणी के पृथ्वी पर जन्म लेने से लेकर मृत्यु तक उसके कर्मों को अपने पुस्तक में लिखते रहते हैं।

भगवान चित्रगुप्त परमपिता ब्रह्मा जी के अंश से उत्पन्न हुए है। मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने जब सृष्टि की रचना की और इसके लिए देव-असुर, गंधर्व, अप्सरा, स्त्री-पुरुष, पशु-पक्षी आदि को जन्म दिया तो उसी क्रम में यमराज का भी जन्म हुआ। जिन्हें धर्मराज कहा जाता है, क्योंकि वे धर्म के अनुसार ही प्राणियों को उनके कर्म का फल देते हैं। यमराज ने इस बड़े कार्य के लिए जब ब्रह्मा जी से एक सहयोगी की मांग की तो ब्रह्मा जी ध्यानलीन हो गए और एक हजार वर्ष की तपस्या के बाद एक पुरुष उत्पन्न हुआ, जिसे भगवान चंद्रगुप्त के नाम से जाना गया। चूंकि इस पुरुष का जन्म ब्रह्मा जी की काया हुआ था, अतः इन्हें कायस्थ भी कहा जाता है।

यम द्वितीया के दिन यम और यमुना की पूजा के साथ भगवान चित्रगुप्त जी की भी विशेष पूजा की जाती है क्योंकि भगवान चित्रगुप्त यमदेव के सहायक हैं। व्यवसाय से जुड़े लोगों के लिए चित्रगुप्त की पूजा का बहुत महत्व होता है। इस दिन नए बही खातों पर ‘श्री’ लिखकर कार्य का आरंभ किया जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि कारोबारी अपने कारोबार से जुड़े आय-व्यय का ब्योरा भगवान चित्रगुप्त जी के सामने रखते हैं और उनसे व्यापार में आर्थिक उन्नति का आशीर्वाद मांगते हैं।
भगवान चित्रगुप्त की पूजा में लेखनी-दवात का बहुत महत्व है। भगवान चित्रगुप्त और यमराज की मूर्ति या उनकी तस्वीर रखकर श्रद्धापूर्वक फूल, अक्षत, कुमकुम, एवं नैवेद्य आदि को अर्पित करके विधि-विधान से पूजा करें। इसके बाद एक सादे कागज पर रोली घी से स्वातिक का निशान बनायें, फिर पांच देवी – देवता का नाम लिखें. साथ में मषीभाजन संयुक्तश्चरसित्वं! महीतले. लेखनी- कटिनीहस्त चित्रगुप्त नमोऽस्तुते. चित्रगुप्त! नमस्तुभ्यं लेखकाक्षरदायकम्. कायस्थजातिमासाद्य चित्रगुप्त! नमोऽस्तुते. मंत्र भी लिखें।

Exit mobile version