राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने जाति व्यवस्था पर बड़ा बयान दिया है| समाज को जाति व्यवस्था को भूल जाना चाहिए। यह अतीत था। हमारे शास्त्र जातिगत असमानता को कतई स्वीकार नहीं करते हैं। सामाजिक समरसता हमारी परंपरा का हिस्सा थी। एक कार्यक्रम के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जातिगत भेदभाव का समर्थन कभी नहीं किया जा सकता है।
विदर्भ अनुसंधान बोर्ड की ओर से डॉ. मदन कुलकर्णी और डॉ. वज्रसुची-टैंक की ओर से रेणुका बोकारे की पुस्तक का प्रकाशन समारोह आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता मोहन भागवत ने की। अपने अध्यक्षीय बयान में सरसंघचालक ने कहा कि यदि कोई आज जाति और जाति की आवश्यकता के बारे में पूछे तो प्रत्येक समाज कल्याण व्यक्ति कहेगा और कहना चाहिए कि जो हुआ वह अतीत में है। मोहन भागवत ने कहा कि किसी भी तरह का भेदभाव स्वीकार्य नहीं है।
उन्होंने आगे कहा कि मध्य युग में दुर्भाग्य से धर्म को छोड़ दिया। उसके पापों को धोना आवश्यक है। वह समय बीत चुका है। अब संविधान ने कुछ चीजें तय की हैं। हमारे लोकतंत्र में कई बातों पर चर्चा करने की जरूरत है। उन्होंने यह भी राय व्यक्त की कि दोनों पक्षों को जानना आवश्यक है।